
भारत द्वारा सिंधु नदी के जल प्रवाह को सीमित करने के फैसले से पाकिस्तान में हड़कंप मच गया है। जल संकट की आशंका से घबराए पाकिस्तान ने औपचारिक तौर पर भारत से इस फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की है। पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव सैय्यद अली मुर्तुजा ने भारत के जल शक्ति मंत्रालय को पत्र लिखकर बातचीत की पेशकश की है।
भारत का दो टूक संदेश: “खून और पानी साथ नहीं बह सकते”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में स्पष्ट किया था कि पाकिस्तान को अब किसी भी तरह की रियायत नहीं दी जाएगी। उन्होंने कहा, “खून और पानी साथ नहीं बह सकते”, जो पाकिस्तान के लिए कड़ा संदेश माना जा रहा है।
भारत की जलनीति पर बड़ी तैयारी
भारत अब रावी, ब्यास और सतलुज नदियों के जल पर अपना अधिकतम अधिकार सुनिश्चित करने की योजना पर काम कर रहा है। इसका सीधा असर पाकिस्तान की जल, कृषि और ऊर्जा सुरक्षा पर पड़ेगा। पाकिस्तान के पंजाब इलाके में सूखे की आशंका पहले से गहराने लगी है।
पाकिस्तान की चिंता: जीवन रेखा पर संकट
भारत के फैसले के बाद सिंधु जल संधि को लेकर पाकिस्तान की बेचैनी बढ़ गई है। क्योंकि उसकी जल आपूर्ति का बड़ा हिस्सा झेलम, चेनाब और सिंधु नदियों पर निर्भर है, जो भारत से होकर बहती हैं। यदि भारत इन नदियों के जल का उपयोग बढ़ाता है, तो पाकिस्तान में सिंचाई, पीने का पानी और बिजली उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित होंगे।
भारत की रणनीति: पाकिस्तान की जल निर्भरता को खत्म करना
सूत्रों के अनुसार, भारत सरकार पाकिस्तान की अपील से प्रभावित नहीं है और वह सिंधु जल पर अपनी वैध हिस्सेदारी का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस कदम उठा रही है। भारत की इस रणनीति को पाकिस्तान के लिए रफीकी और नूर खान एयरबेस की तबाही से भी बड़ा झटका माना जा रहा है।