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109 सालों बाद अंग्रेजों से लोहा लेने वाले शहीद लागुड़ किसान का संसदीय सचिव के प्रयास से हुआ अंतिम संस्कार, इतिहास के पन्नों में है चर्चित नाम, पढ़िए पूरी खबर

रोमी सिद्दीकी/अम्बिकापुर/बलरामपुर। अंग्रेजों से लोहा लेने वाले शहीद लागुड़ नगेसिया का 109 साल बाद शुक्रवार को क्षेत्रीय विधायक व संसदीय सचिव चिंतामणी महाराज के प्रयास से अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। ब्रिटिशकाल के दौरान 1913 में लागुड़ को अंग्रेजों ने मृत्युदंड दिया था। जिसके बाद शहीद का कंकाल सरगुजा जिला मुख्यालय अंबिकापुर के सबसे पुराने स्कूल में रखा हुआ था। जिसे लेकर संसदीय सचिव ने सरगुजा व बलरामपुर कलेक्टर को पत्र लिखकर अंतिम संस्कार के लिए शहीद के कंकाल की माँग की थी। परिजनों ने ग्राम सामरी में विधिविधान से अंतिम संस्कार किया गया है। इधर आदिवासी समाज के लोग भी लंबे समय से उनके परिजन को देने की मांग कर रहे थे, ताकि वे उसका अंतिम संस्कार कर सकें।

छत्तीसगढ़ के सरगुजा में ब्रिटिशकाल में अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने वाले एक लागुड नगेशिया को मृत्युदंड उपरांत उसके कंकाल को तब के एडवर्ड स्कूल और वर्तमान के मल्टी परपज स्कूल में विज्ञान के स्टूडेंट को पढ़ाने के नाम पर रख दिया गया। जिसे आदिवासी समाज के लोग उनके परिजन को देने की मांग कर रहे थे। ताकि वे उसका अंतिम संस्कार कर सकें। इधर समाज के लोग सवाल उठा रहें हैं कि वर्ष 1913 में जब कुसमी इलाके के लागुड़ नगेसिया शहीद हुए, तब स्कूल भवन में इतनी बड़ी पढ़ाई भी नहीं होती थी कि वहां किसी का कंकाल रखकर पढ़ाई कराई जाए। मामले में संसदीय सचिव चिंतामणी महाराज के प्रयास से शुक्रवार को परिजनों द्वारा ग्राम सामरी में विधिविधान से शहीद लागुड़ किसान का अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। इस दौरान पूर्व केंद्रीय अजजा अध्यक्ष नंदकुमार सायं, जनपद उपाध्यक्ष हरीश मिश्रा, डीडीसी अंकुश सिंह, भाजपा मंडल अध्यक्ष संजय जायसवाल, भरतसेन सिंह, संतोष इंजीनियर, धिरजन उराँव सहित नगेशिया समाज व भारी संख्या में पुलिस बल मौजूद रही।

इतिहास के पन्नो में चर्चित नाम

अंग्रेजों से लोहा लेने वाले लागुड़ किसान व बिगुड़ उत्तरी छत्तीसगढ़ इतिहास के पन्नों में चर्चित नाम है।बलरामपुर जिले स्थित कुसमी ब्लाॅक के कुदाग निवासी लागुड़ नगेसिया पुदाग गांव में घर-जमाई रहता था। इसी दौरान उसका झुकाव झारखंड में चल रहे टाना भगत नामक आंदोलनकारी के शहीद होने के बाद टाना आंदोलन से हुआ। इसके बाद वह आंदोलन में शामिल हुआ और लागुड के साथ बिगू और कटाईपारा जमीरपाट निवासी थिथिर उरांव के साथ आंदोलन करने लगे। उन्होंने अंग्रेजों के लिए काम करने वालों को मार डाला। इसके बाद 1912-13 में थीथिर उरांव को घुड़सवारी दल ब्रिटिश आर्मी ने मार डाला और लागुड़ बिगुड को पकड़कर ले गए। कहा जाता है कि उसके बाद दोनों को खौलते तेल में डालकर मार डाला गया। लागुड-बिगुड की कहानी सरगुजा क्षेत्र में लागुड किसान और बिगुड बनिया के रूप में आज भी प्रसिद्ध है।

सामरी क्षेत्र के ग्रामीणों ने किया विरोध, दिखाया काला झंडा

शहीद लागुड़ किसान के अंतिम संस्कार के दौरान सामरी क्षेत्र के ग्रामीणों द्वारा आपत्ति व विरोध जताया है। ग्रामीणों द्वारा बताया गया की लागुड़ नगेशिया ने हमारे कई पूर्वजों की हत्या की है। अंतिम संस्कार अगर किया जाना है तो सामरी छठ घाट छोड़कर अन्य जगह किया जाए या लागुड़ के गृह-ग्राम कुंदाग में किया जाए। वही अंतिम संस्कार से वापस आ रहे संसदीय सचिव के क़ाफ़िले को प्रदर्शनकारियों द्वारा काला झंडा दिखाकर विरोध प्रदर्शन किए जाने की कोशिस की गई, पुलिस बल द्वारा करीब एक दर्जन प्रदर्शनकारियों को पकड़कर थाने ले गई। बाद में प्रदर्शनकारियों को समझाईस देकर छोड़ दिया गया।

स्कूल में रखी गई थी अस्थियां

अम्बिकापुर के मल्टीपर्पज स्कूल के प्रयोगशाला में लागुड़ की अस्थियां रखी गई थी. उस स्कूल के प्राचार्य एचके जायसवाल का कहना है कि जो अस्थियां स्कूल में रखी गई थी वो किसकी थी, इससे सम्बंधित किसी प्रकार के दस्तावेज प्रबंधन के पास नहीं है. कलेक्टर सरगुजा व कलेक्टर बलरामपुर के निर्देश के बाद नागेसिया समुदाय को अस्थियां दे दी गई है. बहरहाल यह कहना गलत नहीं होगा कि अंग्रेजी हुकूमत को मुंहतोड़ जवाब देने वाले लागुड़ नगेशिया की आत्मा को 109 साल बाद शांति मिली है. विधिवत आज उनका अंतिम संस्कार संपन्न हुआ. 4 फरवरी 2022 का यह दिन इतिहास के पन्नों में शुमार हो चुका है. अब देखने वाली बात होगी कि समाज के लिए वह दिन कब आएगा जब लागुड़ को शहीद का दर्जा दिया जाएगा।

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