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बरसात में बहती संवेदनाएं, अतिम यात्रा बनी संघर्ष की कहानी

Emotions flowing in the rain, the last journey became a story of struggle

रायपुर रिपोर्टर:- सुधीर वर्मा

नवागढ़ विधानसभा के ग्राम मनोधरपुर में सोमवार को एक महिला की अंतिम यात्रा बारिश की बूंदों के साथ बहते दर्द और बेबसी की तस्वीर बन गई। यह सिर्फ एक शवयात्रा नहीं थी, बल्कि एक गांव की पुकार भी थी। आखिर बुनियादी सम्मान और सुविधा भी अब मरने के बाद ग्रामीणों के नसीब में नहीं हैं।

मनोधरपुर की निवासरत साहू समाज की एक वृद्ध महिला के निधन के बाद जब उनका पार्थिव शरीर मुक्तिधाम लाया गया, तब आसमान से लगातार पानी गिर रहा था। सिर पर छाता नहीं था, और श्मशान में कोई शेड नहीं साथ ही ग्रामीणों को शव का अंतिम संस्कार करने के लिए लकड़ियां और छेना भी अपने घर से लाना पड़ा, ऐसे में मजबूर हो कर परिवारजनो और ग्रामीणों ने मिलकर पॉलिथीन की चादरें तानी, जिससे चिता और शव भीगने से बच सके।

लोग मौन पाठ कर रहे थे, कुछ इंद्र देवता से बिनती कर रहे थे कि “थोड़ी देर बारिश थम जाए” ताकि विदाई की यह अंतिम घड़ी गरिमा के साथ पूरी हो सके।

यह दृश्य न केवल आंखें नम करने वाला था, बल्कि गांव की विकास योजनाओं की पोल खोलने वाला भी था। जब अंतिम संस्कार जैसे पवित्र कर्म के लिए भी बुनियादी सुविधाएं न हों, तब सवाल उठता है – क्या हम सच में ‘विकसित’ हो रहे हैं?

यही हालात बीते वर्ष ग्राम चमारी में भी हुए थे। तब तत्कालीन कलेक्टर रणबीर शर्मा ने संवेदनशीलता दिखाते हुए तुरंत शेड निर्माण के लिए राशि स्वीकृत की थी और अतिक्रमण हटवाया था। उस संवेदना की आज मनोधरपुर को भी दरकार है।

अब यह देखना होगा कि प्रशासन और जनप्रतिनिधि इस पीड़ा को सुनते हैं या यह खबर भी अगले बरसात तक भीगती रह जाएगी

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