हेयर ट्रांसप्लांट से दूसरी मौत: इलाज के नाम पर वीडियो कॉल, परिजनों ने कहा – झोलाछाप डॉक्टर के पास डिग्री नहीं

उत्तर प्रदेश के कानपुर से एक और दर्दनाक और चौंकाने वाली खबर सामने आई है। यहां हेयर ट्रांसप्लांट के बाद मयंक कटियार नामक युवक की मौत हो गई। इससे पहले भी विनीत दुबे नाम के एक इंजीनियर की इसी तरह की स्थिति में जान जा चुकी है।
मृतक मयंक कटियार फतेहगढ़ निवासी थे और डॉक्टर अनुष्का तिवारी के कानपुर स्थित केशवपुर इंपायर क्लिनिक में 18 नवंबर को हेयर ट्रांसप्लांट करवाने गए थे। परिजनों का आरोप है कि डॉक्टर की गंभीर लापरवाही और गैर-पेशेवर इलाज के चलते मयंक की अगले ही दिन मौत हो गई।
परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़
मयंक की मां प्रमोदनी कटियार के अनुसार, मयंक ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी संभालता था। वह PSIT कानपुर से बीटेक कर चुका था और खुद का व्यवसाय शुरू करने की तैयारी में था। उसके पिता की पहले ही मौत हो चुकी थी।
18 नवंबर की सुबह 8 बजे मयंक हेयर ट्रांसप्लांट के लिए क्लिनिक गया और दोपहर 2 बजे उसे घर भेज दिया गया। लेकिन उसी रात मयंक को तेज दर्द उठा। डॉक्टर से संपर्क करने पर इंजेक्शन देने की सलाह दी गई, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। हालत बिगड़ती गई—चेहरा सूज गया, रंग काला पड़ गया—और रातभर वह तड़पता रहा।
इलाज के नाम पर केवल वीडियो कॉल
परिजनों ने बताया कि डॉक्टर अनुष्का ने गंभीर स्थिति के बावजूद मयंक को अस्पताल नहीं बुलाया। इलाज के दौरान केवल वीडियो कॉल पर ही सलाह दी जाती रही। जब हालत और खराब हुई तो मयंक को फर्रुखाबाद के एक हृदय रोग विशेषज्ञ के पास भेजा गया, लेकिन वहां भी कोई समस्या नहीं पाई गई।
19 नवंबर को जब परिजन उसे दोबारा कानपुर ले जाने वाले थे, मयंक ने अपनी मां की गोद में दम तोड़ दिया।
क्लिनिक बंद, डॉक्टर फरार
परिजनों का आरोप है कि मयंक की मौत के बाद डॉक्टर अनुष्का तिवारी ने कॉल और व्हाट्सएप पर ब्लॉक कर दिया और क्लिनिक में ताला लगाकर गायब हो गईं।
उनका यह भी कहना है कि अनुष्का तिवारी के पास कोई मान्यता प्राप्त डिग्री नहीं है। वह आधे खर्च में कारीगरों से हेयर ट्रांसप्लांट करवाती थीं, जिसके कारण उनके क्लिनिक में भीड़ लगी रहती थी।
अब भी न्याय की राह देख रहा है परिवार
परिजनों ने शुरू में डर के कारण एफआईआर नहीं करवाई, लेकिन जब विनीत दुबे के केस में मामला दर्ज हुआ, तब उन्होंने भी पुलिस को तहरीर दी।
फिलहाल पुलिस मामले की जांच कर रही है, लेकिन छह महीने बीतने के बावजूद परिवार को न्याय नहीं मिल सका है।
यह घटना न केवल मेडिकल लापरवाही का गंभीर मामला है, बल्कि यह भी बताती है कि बिना प्रमाणिक जांच और रजिस्ट्रेशन के चल रहे क्लिनिक किस कदर लोगों की जान से खेल रहे हैं।