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प्यार अंधा होता है और माता-पिता के स्नेह से ज्यादा शक्तिशाली भी : हाईकोर्ट

बेंगलुरु। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि प्यार अंधा होता है यह तो हर कोई जानता है। लेकिन यही प्यार ऐसा परवान चढ़ जाता है कि माता-पिता, परिवार और समाज से मिलने वाले स्नेह से अधिक शक्तिशाली हथियार भी बन जाता है। हाई कोर्ट ने एक किशोरी के पिता के जरिए दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया। पिता का दावा था कि मेरी बेटी को जबरन भगाकर उसकी शादी कर दी गई है। इसी पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने यह बात कही है।

मांड्या जिले के मालवल्ली तालुक के रहने वाले टीएल नागराजू ने बेटी की जबरन शादी किए जाने को लेकर याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि उनकी 19 साल की बेटी इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ती थी। जिसकी शादी उसकी मर्जी के खिलाफ वहीं काम करने वाले एक वैन चालक से कर दी गई।पिता ने दावा किया कि इंजीनियरिंग कॉलेज में काम करने वाले वैन ड्राइवर ने उसकी लड़की से दोस्ती की और उसकी मासूमियत का फायदा उठाया। पिता ने आरोप लगाते हुए कहा कि चालक ने मेरी बेटी को उकसाया और उसे 13 मई, 2022 को अपना घर छोड़ने के लिए विवश किया। पिता का तर्क था कि पुलिस ने उसे या उसकी पत्नी को अपनी बेटी से बात करने की अनुमति नहीं दी। उसका कहना था कि मैं डर गया कि मेरी बेटी मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है।

वहीं कोर्ट के लड़की से पूछे जाने पर उसने कहा कि वह स्वेच्छा से उस आदमी के साथ गई थी। जिसके बाद अनेकल तालुक स्थित बांदीकलम्मा मंदिर में शादी की थी। फिर वह चिक्का अरशिनाकेरे स्थित अपने पति के साले के घर में रह रही थी।

बालिग लड़की के बयान पर कोर्ट ने खारिज की याचिका

हाई कोर्ट की बेंच ने याचिका की सुनवाई के दौरान पाया कि याचिकाकर्ता की बेटी बालिग थी। जिस पर न्यायमूर्ति बी वीरप्पा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अभिन्न अंग है। इसके साथ ही संविधान जीवन के अधिकार की गारंटी देता है। इस अधिकार को तब तक नहीं छीना जा सकता, जब तक कि एक ऐसे कानून के माध्यम से नहीं लिया जा सकता जो कि मूल रूप से और प्रक्रियात्मक रूप से निष्पक्ष, न्यायसंगत और उचित हो।

कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकार के रूप में संविधान जिस स्वतंत्रता की गारंटी देता है, उसके लिए आंतरिक रूप से प्रत्येक व्यक्ति की खुशी की खोज के लिए केंद्रीय मामलों पर निर्णय लेने की क्षमता है। इसके साथ ही पीठ ने दलील पर सुनवाई के दौरान कहा कि विश्वास और आस्था के मामले संवैधानिक स्वतंत्रता के मूल में हैं।

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