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पुरुषों और बच्चों को भी होती है यूटीआई की समस्या

यूटीआई यानि कि यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन स्त्रियों की सेहत से जुड़ी एक ऐसी गंभीर समस्या है, जिसके बारे में लोगों के मन में कई तरह की बातें रहती हैं। कुछ लोगों को लगता है कि यूटीआई की समस्या सिर्फ महिलाओं को होती है। जबकि यह सच नहीं है, यह समस्या महिलाओं के साथ ही पुरुषों और बच्चों को भी हो सकती है। मुंबई स्थित जसलोक अस्पताल और रिसर्च सेंटर के स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉक्टर डेन्नी लालीवाला ने हमें पुरुषों और बच्चों में होने वाले यूटीआई के कुछ ऐसे कारणों के बारे में बताया है जिसे आप सभी का जानना बहुत जरूरी है।

क्या यूटीआई केवल स्त्रियों की सेहत से जुड़ी समस्या है?

डॉक्टर कहते हैं कि वास्तव में ऐसा नहीं है। यह समस्या पुरुषों को भी हो सकती है। फिर भी बात सच है कि शारीरिक संरचना की वजह से स्त्रियों को यह समस्या अधिक परेशान करती है। एनस और यूरेथ्रा के करीब होने की वजह से स्टूल जैसी गंदगी का कुछ हिस्सा यूरिनरी सिस्टम में भी चला जाता है। फिर उसमें मौज़ूद बैक्टीरिया की वजह से यह इन्फेक्शन हो जाता है।

पुरुषों और बच्चों में यूटीआई होने के क्या कारण हैं?

डॉक्टर कहते हैं कि साफ सफाई के अभाव और किडनी स्टोन की वजह से पुरुषों और बच्चों में यूटीआई का खतरा बढ़ता है। इसके अलावा पुरानी डायबिटीज भी यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन को जन्म देने का काम करती है। अगर आपको लगता है कि आपके अंदर यूटीआई के शुरुआती लक्षण दिख रहे हैं तो अधिक से अधिक पानी पीना शुरु करें और सबसे जरूरी है कि खुद से डॉक्टर बनने से अच्छा है कि किसी प्रसिद्ध डॉक्टर की सलाह लेकर ही बचाव और इलाज शुरू करें।

इस बात की पहचान कैसे की जाए कि किसी को यूटीआई की समस्या है?

यूरिन डिस्चार्ज के दौरान जलन, दर्द, खुजली, बार-बार टॉयलेट जाने की ज़रूरत महसूस होना, यूरिन में ज्य़ादा बदबू, रंगत में पीलापन, कंपकंपाहट के साथ बुखार, भूख न लगना, कमज़ोरी महसूस होना और गंभीर स्थिति में यूरिन के साथ खून आना इस समस्या के प्रमुख लक्षण हैं। अगर इनमें से एक भी लक्षण नज़र आए तो बिना देर किए डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। फिर यूरिन की जांच करके इन्फेक्शन की असली वजह मालूम करने के बाद ही डॉक्टर उपचार शुरू करते हैं।

गर्भावस्था में यूटीआई की आशंका बढ़ जाती है क्योंकि इस दौरान स्त्रियों के शरीर में प्रोजेस्टेरॉन हॉर्मोन का स्तर काफी बढ़ जाता है। दरअसल यही हॉर्मोन यूट्रस को प्रेग्नेंसी के लिए तैयार करता है। इससे यूरेटर्स और ब्लैडर की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती हैं। नतीजतन यूरिन के प्रवाह की गति धीमी हो जाती है। इसी वजह से प्रेग्नेंसी के दौरान यूटीआई के साथ किडनी इन्फेक्शन की भी आशंका बढ़ जाती है। इसीलिए गर्भावस्था के दौरान पर्सनल हाइजीन के प्रति विशेष रूप से सजगता बरतनी चाहिए।

क्या बच्चों को भी यह समस्या हो सकती है?

नवजात शिशुओं को भी ऐसी परेशानी हो सकती है। अत: नहलाते समय उनकी पर्सनल हाइजीन का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जन्मजात रूप से यूरिनरी सिस्टम की संरचना में गड़बड़ी होने पर लड़कों को भी ऐसी समस्या हो सकती है।

क्या पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करने से यूटीआई हो सकता है?

चाहे पब्लिक हो या पर्सनल अगर टॉयलेट साफ न हो तो इसकी वजह से यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्श्न हो सकता है। इसीलिए सार्वजनिक टॉयलेट बाहर से साफ दिखाई दे तो भी इस्तेमाल से पहले फ्लश ज़रूर चलाएं।

क्या टॉयलेट सीट पर किए जाने वाले स्प्रे इस समस्या से बचाव में मददगार होते हैं?

आकस्मिक रूप से ज़रूरत पडऩे पर सार्वजनिक टॉयलेट में इनका इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन कोशिश यही होनी चाहिए कि हमेशा साफ टॉयलेट का इस्तेमाल किया जाए।

क्या बाज़ार में बिकने वाले इंटीमेट वॉश जैसे लिक्विड प्रोडक्ट्स इस समस्या से बचाव में मददगार होते हैं?

यूरिन डिस्चार्ज के बाद साफ पानी का इस्तेमाल ही पर्याप्त होता है।

क्या देर तक यूरिन का प्रेशर रोकने से यूटीआई की समस्या हो सकती है?

यात्रा या मीटिंग जैसी स्थितियों में देर तक यूरिन का प्रेशर रोक कर रखने से उसमें मौज़ूद नुकसानदेह बैक्टीरिया को सक्रिय होने का मौका मिल जाता है और इससे भी संक्रमण हो सकता है।

क्या गर्मियों के मौसम में यूटीआई की आशंका बढ़ जाती है?

सर्दियों की तुलना में गर्मियों के मौसम में यूटीआई की आशंका बढ़ जाती है क्योंकि अधिक तापमान की वजह से शरीर में पानी की कमी हो जाती है।

यूटीआई से बचाव के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

पर्सनल हाइजीन और घर के टॉयलेट की सफाई का ध्यान रखें। हमेशा सूती अंडर गारमेंट्स का इस्तेमाल करें। अगर दोनों में से किसी एक पार्टनर को कोई संक्रमण हो तो शारीरिक संबंध से दूर रहें। हमेशा ज्य़ादा पानी पिएं। अगर कोई भी समस्या हो तो बिना देर किए डॉक्टर से सलाह लें।

अगर किसी को यूटीआई हो जाए तो उसे किन ज़रूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए?

डॉक्टर की सलाह पर सभी दवाओं का नियमित सेवन करें। बीच में दवा खाना बंद न करें। पानी, छाछ, लस्सी और जूस जैसे तरल पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करें। मिर्च-मसाले से दूर रहें। व्यक्तिगत स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। अगर सावधानी बरती जाए तो उपचार के बाद यह समस्या दूर हो जाती है।

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