कजरी तीज हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला खास त्योहार है जिस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। महिलाएं इस दिन अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं और भोलेनाथ-पार्वती माता से घर में सुख-समृद्धि बनाए रखने की मनोकामना करती हैं। हर साल कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का व्रत रखा जाता है। खासकर उत्तरी भारत के राज्यों में महिलाओं की बीच इस व्रत की अत्यधिक मान्यता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार की महिलाएं धूम-धाम से कजरी तीज मनाती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कजरी तीज रक्षा बंधन के तीन दिन बाद और जन्माष्टमी से पांच दिन पहले मनाई जाती है और इसका व्रत रखा जाता है। केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि अविवाहित लड़कियां भी मान्यतानुसार कजरी तीज का व्रत रखती हैं। बता दें कि इस वर्ष कजरी तीज 14 अगस्त रविवार के दिन मनाई जाएगी। इस व्रत की शुरुआत 14 अगस्त के दिन दोपहर 12 बजकर 53 मिनट से हो रही है व समापन रात्रि 10 बजकर 35 मिनट पर होगा।
वहीं, कजरी तीज का शुभ मुहुर्त ज्योतिषनुसार अलग-अलग समयावधि में है। इस दिन शुभ योग बन रहे हैं। इनमें से पहला है अभिजित मुहूर्त जिसका समय दोपहर 12 बजकर 8 मिनट से 12 बजकर 59 मिनट तक माना जा रहा है। इसके बाद सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है जिसका समय रात 9 बजकर 56 मिनट से अगली सुबह 15 अगस्त 6 बजकर 9 मिनट तक बताया जा रहा है।
कजरी तीज पूजा विधि
कजरी तीज पर निर्जला व्रत रखा जाता है जिसमें महिलाएं पानी तक ग्रहण नहीं करती हैं। पूजा के लिए जो सामग्री ली जाती है उसमें कच्चा सूत, नए वस्त्र, पीला वस्त्र, केले के पत्ते। धतूरा, बेलपत्र, शमी के पत्ते, सुपारी, कलश। दूर्वा घास, कपूर, घी, अक्षत, चावल, गंगाजल और गाय का दूध आदि शामिल किया जाता है।
पूजा के लिए सुबह उठकर निवृत्त होकर स्नान किया जाता है। इसके बाद मिट्टी के शिव-गौरी बनाए जाए हैं ताकि पूजा की जा सके। सुहाग की सामग्री भगवान शिव और माता पार्वति की प्रतिमा के समक्ष चढ़ाई जाती है। दान-दक्षिणा और जरूरतमंदों को भोजन करवाया जाता है। महिलाएं रात के समय चांद निकलने से पहले साज-श्रृंगार करती हैं और चंद्रमा को अघर्य देकर पति के साथ पूजा का समापन करती हैं।