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पुत्रमोह में कांग्रेस सरकार की बलि चढाने को तैयार मध्य प्रदेश के 2 नेता, जानिए कौन हैं दोनों

कैसे लिखी गई ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से विदाई की पटकथा

भोपाल। मध्य प्रदेश के दो कद्दावर नेताओं ने पुत्रमोह ( Putramoh) के चलते सरकार पर ही संकट खड़ा कर दिया। मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने पुत्रमोह के चलते ही ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) को न सिर्फ बाहर का रास्ता दिखाया बल्कि प्रदेश की सरकार की बलि भी चढाने पर उतारू हो गए। छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दिल्ली जाते वक्त इस ओर इशारा किया था। उन्होंने कहा था कि कुछ तो मजबूरियां रही होंगी यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।

क्या है पूरा मामला

कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ को छिंदवाड़ा से सांसद बना चुके हैं। तो वहीं दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। इसके बावजूद भी दोनों नेताओं के मन में अपने अपने बेटों की असुरक्षा को लेकर चिंता लगी हुई थी। इनके रिटायर्ड होने के बाद वरिष्ठता क्रम में सबसे आगे ज्योतिरादित्य सिंधिया ही थे। ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया के रहते नकुलनाथ और जयवर्धन सिंह दोनों को मन मांगी मुराद नहीं मिल पाती। इसी को देखते हुए दोनों नेताओं ने मिलकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखाने का कुचक्र रचा।

मेहनत करे किसान और फल खाए फकीर

गांवों में एक कहावत है कि मेहनत करे किसान और फल खाए फकीर। मध्य प्रदेश कांग्रेस पर भी यही कहावत लागू होती है।
दरअसल, कभी राहुल गांधी की टीम के खास सदस्यों में रहे जिस ज्योतिरादित्य की पूरी कांग्रेस में तूती बोलती थी, वह अपने ही राज्य की राजनीति में खुद बेगाना हो चले थे। पार्टी सूत्रों का कहना है कि दिसंबर 2018 में कांग्रेस विधानसभा चुनाव जीती तो इसके पीछे ज्योतिरादित्य सिंधिया की जबरदस्त कैंपेनिंग को श्रेय दिया जाने लगा। इसके बाद सिंधिया को मुख्यमंत्री पद का प्रमुख दावेदार माना जा रहा था।

कहां से मिला झटका

पार्टी नेतृत्व ने उन पर अनुभवी कमलनाथ को तरजीह दी। मुख्यमंत्री बनने से चूक जाने के बाद सिंधिया की नजर प्रदेश अध्यक्ष पद पर टिकी रही कि चलो कम से कम प्रदेश अध्यक्ष ही बन जाएंगे। ‘एक व्यक्ति एक पद’ की परंपरा के मुताबिक फिर माना जाने लगा कि मुख्यमंत्री कमलनाथ सिंधिया के लिए प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ सकते हैं। पर पुत्रमोह के भय से उन्होंने पद भी नहीं छोड़ा।

पद नहीं छोड़ने का दूसरा कारण

महीनों इंतजार के बाद भी वह दिन नहीं आया, जब सिंधिया पार्टी में कमजोर पड़े तो उनके समर्थक विधायक और अन्य कार्यकर्ता भी अपनी ही सरकार में उपेक्षित महसूस करने लगे. सिंधिया समर्थकों को लगा कि ग्वालियर के ‘महाराज’ के हाथ प्रदेश की बागडोर आ जाने के बाद वह कमलनाथ पर दबाव बनाने में सफल हो सकते थे। ऐसे में भय के चलते वह पद भी नहीं छोड़ा गया।

न सीएम बन पाए न प्रदेश अध्यक्ष

दिग्विजय सिंह और कमलनाथ भी यह जानते थे कि सिंधिया के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें संगठन के दबाव में सरकार चलानी पड़ेगी। ऐसे में सिंधिया की कोशिश कामयाब नहीं हुई। सिंधिया न मुख्यमंत्री बन पाए और न ही प्रदेश अध्यक्ष। अब सिंधिया को लगा कि राज्यसभा के रास्ते जाकर दिल्ली की राजनीति फिर से की जाए।

तीसरा विकल्प भी नहीं हाथ आया

मध्य प्रदेश में कुल तीन राज्यसभा सीटों का 26 मार्च को चुनाव होना है। इसमें प्रथम वरीयता के वोटों से कांग्रेस (Congress) और बीजेपी (B J P) की एक- एक सीट पर जीत तय है और लड़ाई तीसरी सीट के लिए है।
पार्टी के जानकारों की मानें तो, कांग्रेस ने सिंधिया को प्रथम वरीयता वाली सुरक्षित सीट देने से इनकार कर दिया। दूसरी सीट पर लड़ाई खतरे से खाली नहीं थी। सूत्रों का यह भी कहना है कि पार्टी ने उन्हें छत्तीसगढ़ से टिकट ऑफर किया, मगर सिंधिया जाने को तैयार नहीं हुए।

किसने लिखी ज्योतिरादित्य के बगावत की पटकथा

पार्टी के जानकार सूत्रों ने बताया कि ज्योतिरादित्य की राह में समय-समय पर मुश्किलें खड़ी कर उन्हें पार्टी से बगावत करने को मजबूर कर दिया गया। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों उम्र के कारण सियासत के आखिरी दौर में हैं। दोनों नेताओं ने अपने बेटों को भले ही मध्य प्रदेश की राजनीति (politics) में स्थापित कर दिया है, मगर उनमें असुरक्षा का बोध भी है।

कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ को अपनी परंपरागत छिंदवाड़ा सीट से सांसद बनाकर राजनीतिक वारिस बना चुके हैं। वहीं दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह कमलनाथ सरकार में मंत्री हैं। सूत्रों का कहना है कि कमलनाथ और दिग्विजय के रिटायर होने के बाद सिंधिया का रास्ता मध्य प्रदेश में हमेशा के लिए खुल जाता और इसका असर दोनों नेताओं के बेटों की आगे की महत्वाकांक्षाओं पर पड़ सकता था। बस इसी बात के भय से दूरदर्शी दिग्विजय और कमलनाथ ने सिंधिया की विदाई की पटकथा (The script) रच दी। जब कि जानकारों का कहना है कि उनके पुत्रों के सियासी राह में कोई बाधा नहीं है।

 

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