छत्तीसगढ़

कोर्ट की आड़ में आदिवासियों को बेघर करना चाहती है केंद्र सरकार – लक्ष्मण कड़ती

तथ्य कोर्ट के संज्ञान में नहीं

दिनेश गुप्ता
बीजापुर.
आदिवासियों और जंगल में रहने वाले समुदायों को जबरन जंगल से खदेड़ कर ज़मीन खाली कराने वाला सुप्रीम कोर्ट का हालिया आदेश वनवासी जनों के जीवन में अंधेरा लाने वाला है. देश के 16 राज्यों के 10 लाख से अधिक आदिवासियों को बेघर करने वाले आदेश के पूर्व सुनवाई में सरकार द्वारा अपना पक्ष तक नहीं रखना केंद्र सरकार की वनवासी विरोधी मानसिकता को दिखाने वाला है.

उक्त बातें सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय राष्टीय छात्र संगठन के प्रदेश महासचिव लक्ष्मण कड़ती ने कहीं. 27 जुलाई के पहले जंगल में निवास करने वाले आदिवासी को खाली कराने की पहल की जानी है. उन्होनें आगे कहा कि माननीय न्यायालय के निर्णय पर उनकी कोई टिप्पणी नहीं है किंतु केन्द्र सरकार का रवैया इस मामले में पूरी तरह संदिग्ध है.

ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार की ओर से जानबूझकर सही तथ्य कोर्ट के संज्ञान में नहीं लाए गये क्योंकि यह निर्णय दूरगामी परिणाम सामने लायेगा जिससे देश का बड़ा हिस्सा बेघर होगा और वनवासी जनों का सामाजिक ताना बाना पूरी तरह ध्वस्त हो जाएगा. उन्होनें यह भी कहा कि इस आदेश के बाद 27 जुलाई के पहले जंगल में निवास करने वाले आदिवासी को खाली कराने की पहल की जानी है जो पूरे समाज में निराशा का वातावरण बना रहा है.

आज तो यह आदेश 16 राज्यों के संदर्भ में दिया गया है किंतु देश के सभी राज्य इसे मानने बाध्य होंगे. यही वजह है कि आज देश के हर हिस्से में इस आदेश को लेकर विरोध के स्वर उठ रहे हैं.

श्री कड़ती ने भरोसा दिलाया कि भारतीय राष्टीय छात्र संगठन इस मामले में चुप नहीं रहेगी और वनवासी जनों के हकों की रक्षा के लिए हर स्तर पर आवाज़ बुलंद करेगी. उन्होनें इस बात पर गहरा आश्चर्य जताया कि 13 फरवरी को सुनवाई के दौरान अधिनियम का बचाव करने केंन्द्र सरकार की ओर से कोई भी वकील पेश नहीं हुआ जिसके कारण कोर्ट में आदिवासियों का पक्ष ही नहीं रखा गया जिसके बाद अरुण मिश्र, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की बेंच ने फैसला सुनाते हुए 10 लाख से ज़्यादा लोगों को जंगल खाली कराने का आदेश दे दिया.

उन्होनें इस पूरे मामले में केन्द्र सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि कहीं इसमें कोई साज़िश तो नहीं जिससे आसानी से जंगल खाली कराने का आसान रास्ता निकले और बड़े धन पतियों को जंगल की ज़मीन उपलब्ध कराई जा सके. भारतीय राष्टीय छात्र संगठन आदिवासियों के साथ है और जमीन व जंगल की लड़ाई के लिये हर कदम पर कंधे से कंधा मिलाकर पुर जोर विरोध करेगी.

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