
रोमी सिद्दीकी/अम्बिकापुर। सरगुजा सहित पुरे प्रदेश के राजनीति में इन दिनों अजीब सी बदलाव आने के संकेत मिलना शुरू हो गया है। राजनीति के जानकार भी अपने माथे पर हाथ लगा कर बैठ गए हैं कि आखिर ऊठ अब किस करवट बैठेगी। जी हाँ, हम बात कर रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता, सरगुजा रियासत के महाराज, अम्बिकापुर के विधायक टीएस सिंह देव व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की जो एक समय एक गहरे दोस्त के साथ-साथ छत्तीसगढ़ कांग्रेस राजनीति के चमकते हुए ध्रुव तारे थे लेकिन आज राजनीति के बदले परिस्थितियों के कारण एक दूसरे के घोर विरोधी हो गए हैं। कारण चाहे जो भी हो लेकिन 15 वर्षों के भाजपा के सत्ता को उखाड़ फेंकने में सड़क से लेकर सत्ता के सफर में इन दोनों नेताओं ने मेहनत करने में कोई कसर नहीं छोडा था।
युवाओं में नया जोश भरने व सत्ता में बैठे भाजपा से सिधे टक्कर लेने में और लम्बे समय से कांग्रेस में रहकर कांग्रेस में भितरघात करने वाले कांग्रेस के नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने में भी पिछे नहीं रहे। जिससे कांग्रेस को लम्बे समय के बाद सत्ता का सुख नशिब हुआ।
वहीं चुनाव में बेहतर रणनीति बनाने व किसी ना किसी बात से कांग्रेस से नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने व चुनाव में किसी भी संसाधन की कमी ना हो इसके लिए एक बहतर कार्ययोजना बनाने में या फिर जन घोषणा पत्र तैयार करने में जो काबिलियत टीएस सिंह देव ने दिखाया, उससे आज भी कांग्रेस के शीर्ष नेता प्रभावित है। यही कारण है कि समय-समय पर सिंहदेव को दूसरे राज्यों का भी धोषणा पत्र तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई।
बहरहाल, वर्ष 2018 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने से ठीक पहले जो विवाद बना आज वही विवाद कांग्रेस को आने वाले समय में फिर से वनवास में ना भेज दे, ऐसी परिस्थितियों अब बनने लगी है। राजनीति के जानकारों की माने तो कैबिनेट मंत्री टीएस सिंहदेव ने अपने ही सरकार पर जो गम्भीर आरोप लगाए हैं। उससे तो यही प्रतीत होता है कि अब सिंहदेव ज्यादा समय कांग्रेस की राजनीति में रहने वाले तो नहीं है, जाहिर है राजनीति करने के लिए जिस भी पार्टी वे चयन करें उसमें वे अपने आप को क्लीन चिट देने के लिए इन आरोपों को ही जनता के बीच लेकर जाएंगे। ऐसी स्थिति में जनता की सहानुभूति टीएस सिंह देव के साथ होगा। जिसका सीधा खामियाजा कांग्रेस पार्टी को उठाना पड सकता है।
राजनीतिज्ञों की माने तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व टीएस सिंह देव के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर एक प्रकार का अंदरूनी खिचातानी लम्बे समय से चली आ रही थी। जिसकी जानकारी दिल्ली में बैठे कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को भी भली-भांति है लेकिन इसके बावजूद उनके द्वारा मामला शांत कराने के बजाए चुप रहना कइयों सवाल खड़े करता हैं। बहरहाल, दिल्ली दरबार में मुख्यमंत्री की पेठ जबरदस्त है इससे हर कोई वाकिफ है। ऐसे में मुख्यमंत्री अपने रसूख का उपयोग करते हुए कई अवसरों में सिंहदेव और उनको समर्थकों को सरकारी मशीनरी से डैमेज करने में भी परहेज नहीं किया गया।
आलम तो अंबिकापुर में यहां तक पहुंच गया कि उनके कई खास माने जाने वाले नेताओं के घरों में पुलिस ने दबिश तक दे दिया। यही नहीं सरगुजा के कलेक्टर से एसपी तक एसडीएम से तहसीलदार तक के अधिकारी सिंहदेव के समर्थकों को नजरअंदाज करने लगे जिससे कार्यकर्ताओं में श्री देव को लेकर काफी नाराजगी भी देखी गई। यह सब एक सोची समझी चाल की तरह सरगुजा में अपनाया जा रहा है। वही एक मंत्री को इतना पावरफुल बना दिया गया है कि उसके आने भर से कलेक्टर ,एसपी, कमिश्नर ,चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट सहित तमाम सरकारी मशीनरी उसके पीछे खड़े हो जाते हैं। यह सब सिर्फ इसलिए ताकि किसी तरह सिंह देव के कद को छोटा से छोटा किया जा सके। जाहिर है ऐसा होने से टीएस सिंह देव के कई समर्थक टूटकर दूसरे खेमे में चले गए हैं।
वहीं सूत्रों की माने तो उनके मंत्रालय में भी उनके अधिकारों को सचिव स्तर के अधिकारियों को हस्तांतरित करने से उन्हें काम करने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। कई निर्णय ऐसे राज्य सरकार के द्वारा उनके मंत्रलय से लिए गए, जिससे उन निर्णयों के संबंध में उनसे कोई चर्चा नहीं की गई। ऐसी स्थिति में ही सिंहदेव ने यह कदम उठाया होगा। वही राज्य सरकार के प्रवक्ता मंत्री रविन्द्र चौबे ने मीडिया के समक्ष यह बताया है कि सिंहदेव के इस कदम को लेकर कांग्रेस के विधायक काफी नाराज हैं और वे इसे अनुशासनहीनता मान रहे हैं। जिसे लेकर 61 विधायकों ने संयुक्त हस्ताक्षर कर के आलाकमान को सिंह देव के विरुद्ध कार्रवाई हेतु पत्र लिख दिया है इसके बावजूद कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की ओर से इस संबंध में कोई भी जवाब नहीं आना कहीं ना कहीं छत्तीसगढ़ के कांग्रेस में सरगर्मी तेज होने वाली है।