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दिल्लीदेश

आज से देशभर में लागू हुए तीन नए क्रिमिनल कानून, अब मर्डर करने पर धारा 302 नहीं, 101 लगेगी, अब घर बैठे दर्ज करा सकते हैं e-FIR

अब मर्डर करने पर धारा 302 नहीं, 101 लगेगी। धोखाधड़ी के लिए फेमस धारा 420 अब 318 हो गई है। रेप की धारा 375 नहीं, अब 63 है। शादीशुदा महिला को फुसलाना अब अपराध है, जबकि जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध अब अपराध की कैटेगरी में नहीं आएगा।

आज यानी 1 जुलाई से देशभर में तीन नए क्रिमिनल कानून लागू होने से ये बदलाव हुए हैं। नए क्रिमिनल कानूनों में महिलाओं, बच्चों और जानवरों से जुड़ी हिंसा के कानूनों को सख्त किया गया है। इसके अलावा कई प्रोसीजरल बदलाव भी हुए है, जैसे अब घर बैठे e-FIR दर्ज करा सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक नए क्रिमिनल कानूनों से 4 मुश्किलें देखने को मिल सकती हैं…

1. जजों को दो तरह के कानून में महारत हासिल करनी पड़ेगी

30 जून से पहले दर्ज सभी मामलों का ट्रायल, अपील पुराने कानून के अनुसार ही होगा। देश की अदालतों में लगभग 5.13 करोड़ मुकदमे पेंडिंग हैं, जिनमें से लगभग 3.59 करोड़ यानी 69.9% क्रिमिनल मैटर्स हैं। इन लंबित मामलों का निपटारा पुराने कानून के मुताबिक ही किया जाएगा।
नए कानून में मुकदमों के जल्द ट्रायल, अपील और इसके फैसले पर जोर दिया गया है। पुराने मुकदमों में फैसलों के बगैर नए मुकदमों पर जल्द फैसले से जजों के सामने नई चुनौती आ सकती है।
इसके अलावा एक ही विषय पर जजों को दो तरह के कानून में महारथ हासिल करनी पड़ेगी, जिसकी वजह से कन्फ्यूजन बढ़ने के साथ मुकदमों में जटिलता बढ़ सकती है।
2. पुलिस के ऊपर दोहरा दबाव बढ़ेगा

नए कानून से सबसे ज्यादा बोझ पुलिस पर पड़ेगा। पुराने केस में अदालतों में पैरवी के लिए उन्हें पुराने कानून की जानकारी चाहिए होगी, जबकि नए मुकदमों की जांच नए कानून के अनुसार होगी।
एक एनालिसिस के अनुसार नए कानूनों में तीन चौथाई से ज्यादा हिस्सा पुराने कानून का ही है, लेकिन नयापन लाने के चक्कर में IPC, CrPC और एविडेंस एक्ट की पुरानी धाराओं का क्रम नए कानून में बेवजह बदल दिया गया है। इस वजह से पुलिस में भ्रम की स्थिति बढ़ेगी।
3. वकीलों की जिम्मेदारी और कन्फ्यूजन बढ़ेगा

अब वकीलों को दोनों तरह कानूनों की जानकारी रखनी होगी। नए कानून में मुकदमों के जल्द फैसले के प्रावधान हैं, लेकिन पुराने मुकदमों के निपटारे के बगैर नए मुकदमों पर जल्द फैसला मुश्किल होगा। ऐसे में क्लाइंट और लिटीगैंट की तरफ से वकीलों और जजों पर कई तरह के दबाव बढ़ेंगे।
कानून की पढ़ाई करने वाले छात्र अब नए कानून का अध्ययन करेंगे, लेकिन इसके लिए उन्हें रिसर्च मटेरियल और केस लॉ की कमी रहेगी। वकालत में आने के बाद उन्हें पुराने कानून की भी जानकारी नए सिरे से हासिल करनी होगी।
4. आम लोगों का पुलिस उत्पीड़न बढ़ सकता है

नए कानूनों में पुलिस की हिरासत की अवधि में बढ़ोतरी जैसे नियमों से पुलिस उत्पीड़न के मामले और आम लोगों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
जिला अदालतों का नियंत्रण हाईकोर्ट के अधीन होता है, लेकिन अदालतों के लिए इन्फ्रा, कोर्ट रूम, जजों का वेतन आदि का बंदोबस्त राज्य सरकारों के माध्यम से होता है।
इन्फ्रा की कमी की वजह से जिला अदालतों में लगभग 5,850 जजों के पदों पर भर्ती नहीं हो पा रही है। इसलिए नए कानूनों की सफलता राज्यों के सहयोग पर निर्भर रहेगी।
इसके अलावा नए क्रिमिनल कानूनों के रास्ते में 3 अन्य बड़ी चुनौतियां भी हैं…

तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक जैसे कई विपक्ष शासित राज्य नए कानून को लागू करने का विरोध कर रहे हैं। विपक्षी सांसदों की अनुपस्थिति में आनन-फानन में इन्हें संसद में पारित किया गया था। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार ये कानून समवर्ती सूची में आते हैं, जिसके तहत राज्यों को भी इन विषयों पर कानून बनाने और उनमें बदलाव करने का अधिकार है। इन कानूनों को राज्यों की पुलिस इम्प्लीमेंट करेंगी, इसलिए राज्यों के सहयोग के बगैर इनको अमल में लाना मुश्किल होगा।
नए कानूनों में फोरेंसिक जांच को डिजिटलाइज और जल्द ट्रायल करने के प्रावधान किए गए हैं। ऐसे में कई राज्यों में जरूरी इन्फ्रा मौजूद ना होने के कारण दिक्कतें आएंगी। इन्फ्रा डेवलपमेंट के लिए गृह मंत्रालय ने लगभग 2,254 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं, लेकिन इनको शुरू होने में चार साल से ज्यादा का वक्त लग सकता है।
इन कानूनों में क्राइम सीन, सर्च, और सीजर आदि की वीडियो रिकॉर्डिंग और उनके डिजिटल सबूतों को भी वैध मानने का प्रावधान किया गया है। इसके लिए गृह मंत्रालय ने ई-साक्ष्य ऐप जारी किया है, लेकिन स्थानीय स्तर पर थानों में पुलिस के पास बेसिक सुविधाओं का अभाव है। इसके चलते नए कानून को पूरी तरह से लागू होने में कई अड़चने आ सकती हैं।

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