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पशुधन विकास से ग्रामीणों की आय बढ़ाने की है शासन की योजना, जिले में 22 गोठानों की जा रही स्थापना

दिनेश गुप्ता, दंतेवाड़ा। सुराजी गांव योजना के तहत दंतेवाड़ा जिले में 22 गोठानों की स्थापना की जा रही है। साथ ही जिले की चार गोठानों को आदर्श के रूप में विकसित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ शासन के मंशा के अनुरूप छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा,गरुवा, घुरवा अऊ बाड़ी के लिए कार्य किया जाना है। वर्तमान समय में जिले में चार आदर्श गोठान झपोड़ी, टेकनार, गाटम और कुआकोंडा निर्माणाधीन है।

गौसंवर्धन के क्षेत्र में पहली बार इतने व्यापक स्तर पर कार्य होने जा रहा है, इस योजना के तहत सरकार पशुओं को पोषित, संरक्षित, उनके चारे और चारागाह की व्यवस्था करेगी। एक गोठान में पशुओं के लिए पानी,चारे, छाया के लिए मचान, बैठने के लिए प्लेट फार्म, चारे के लिए मेंजर की व्यवस्था की जा रही है। पशुओं को गोठान में एकत्रित रखने के लिए गोठान की चारों ओर से सी पी टी और फेंसिग कि जा रही है। साथ ही गोठान में बीमार पशुओं के लिए शेड, चारे के भंडारण के लिए कक्ष और चरवाहों के लिए कक्ष का निर्माण किया जा रहा है।

पशुओं के पोषण के लिए अलग से चारागाह का विकास किया जा रहा है जिसमें बहुवर्षीय हाइब्रिड नैपियर का रोपण और अन्य मौसमी चारे मक्का, जई, बरसीम, लूसर्न का रोपण किया जाएगा।गोठान एवं चारागाह के अंदर और चारों ओर फलदार और चारा पौधों जैसे सुबबूल, ग्लिरीसीडिया का भी रोपण किया जाएगा। गोठान का समेकित विकास पंचायत विभाग, पशुधन विकास विभाग, कृषि विभाग,उद्यानिकी विभाग के द्वारा किया जा रहा है साथ ही सभी विभाग विभागीय योजनाओं का अधिकाधिक क्रियान्वयन उक्त चयनित ग्रामों में किया जावेगा।

उक्त ग्राम में बाड़ी का विकास, घुरवा विकास (जैविक खाद बायो कम्पोस्ट), नरवा (नदी-नाले) जल संरक्षण और गरुवा (पशुधन) विकास के द्वारा ग्रामीणों के आय में वृद्धि कर उनके आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। गोठान स्थापना के माध्यम से आवारा पशुओं का नियंत्रण और फसलों को होने वाले नुकसान से बचाव के साथ ही साथ पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान के द्वारा नस्ल सुधार को निचले स्तर तक पहुँचाना है।इस योजना से पशुओं के एक स्थान पर टीकाकरण, उपचार और अन्य चिकित्सकीय सुविधाओं का लाभ मिल सकेगा।

विदित हो कि छतीसगढ़ निम्नकोटि के पशु पाए जाते हैं। जिनमें दुग्ध और मांस उत्पादन की क्षमता कम होती है। जिन्हें कृत्रिम गर्भाधान और प्राकृतिक गर्भाधान के माध्यम से इनकी नस्ल में सुधार कर उत्पादन क्षमता में वृद्धि की जा सकेगी। जिसका लाभ पशुपालकों को होगा।

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