परसा पत्ते के दोने और बाजे में थाप के साथ शुरू हुआ आदिरंग महोत्सव

0 उदघाटन समारोह में तीजनबाई ने कहा अब सिर्फ भारत रत्न ही बचा है
खैरागढ़। पारंपरिक रूप से परसा पत्ते से बने दोने और बाजे मे थाप के साथ इंदिरा कला संगीत विवि में कापालिक शैली की प्रसिद्ध पंडवानी गायिका पद्म विभूषण तीजन बाई के मुख्य आतिथ्य मे आदिरंग महोत्सव का शुभारंभ हुआ। ठेठ छत्तीसगढ़ी में बात रखते हुए तीजनबाई ने महोत्सव के लिए बधाई देते हुए कहा कि उन्हें भाषण देना नहीं आता। शरीर में अब ताकत भी नहीं रही। लेकिन संगीत विवि के नाम से खींची चली आई। स्वागत के दौरान कलाकारों को गेड़ी मे चढ़कर नाचते देख मन हुआ लेकिन क्या करू पूरी जिंदगी गेड़ी मे सिर्फ दो कदम ही चलना सीख पाई। विवि को संगीत और कला का खदान बताते हुए कहा कि पढ़ी-लिखी
नहीं हूं लेकिन कला के चलते पढ़ने-लिखने वालों के साथ उठने-बैठने का सौभाग्य मिला है। मुख्य अतिथि ने कहा कि पंडवानी गायन के चलते देश के चार बड़े अवार्ड मे से अब सिर्फ भारत रत्न ही बचा है।
सिर्फ भारत रत्न ही बचा है
उदघाटन समारोह में तीजन बाई ने अवार्ड मिलने से जुड़े संस्मरणो को मंच से साझा किया। विशिष्ट अतिथि कुलपति प्रो डॉ मांडवी सिंह ने आयोजन को सुखद अवसर बताते हुए कहा कि एनएसडी की ओर से आयोजन के प्रस्ताव को उन्होने सहर्ष स्वीकारा। आदिवासी कला संस्कृति को लाभप्रद बताते हुए उन्होने तीन दिनी आयोजन की सफलता के लिए सहयोग मांगा। स्वागत भाषण देते हुए एनएसडी के प्रभारी निदेशक प्रो. सुरेश शमर ने कार्यक्रम की शुरुआत में विलंब को लेकर क्षमा मांगते हुए कहा कि रायपुर के बाद संगीत कला के तीर्थ
जहॉ चौबीसां घंटे संगीत कला के विविध रंग मौजूद रहते हो वहॉ आदिरंग महोत्सव का आयोजन गर्व का विषय है।
लघु भारत का स्वरूप दिखेगा
अध्यक्षीय उद्बोधन मे एनएसडी के कार्यकारी अध्यक्ष अजरुन देव चारण ने कहा कि संगीत विवि मे आदिम रंजन की परंपरा से जुड़ा आयोजन छंदोमय परिसर में होने जा रहा है। संगीत कला के मानवीय पक्ष को लेकर बात रखते हुए कहा कि लय, अनुपात और सामंजस्य से परिसर मे लघु भारत का स्वरूप आयोजन के दौरान दिखेगा। कार्यक्रम का संचालन डॉ राजन यादव और आभार प्रदर्शन एएन राय ने किया । जिसके बाद पारंपरिक आकर्षक परिधानो और वाद्ययंत्रो की सुमधुर गूंज के साथ आदिवासी नृत्य और नाट्यकला की शुरूआत मे 15 राज्यों के चौबीस से ज्यादा दलों के कलाकारों ने अपने-अपने प्रदेश की सांस्कृतिक परंपरा को मंच पर जीवंत किया।