‘गंगा-यमुना के बीच की जमीन पर स्वामित्व का दावा करने वाली याचिका हाई कोर्ट में खारिज, याचिकाकर्ता पर लगा जुर्माना
नई दिल्ली। गंगा और यमुना के बीच दोआबे की जमीन के सभी भूखंडों पर स्वामित्व का दावा करने वाले व्यक्ति पर दिल्ली हाईकोर्ट ने 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। याचिकाकर्ता कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह ने उस जमीन के स्वामित्व का दावा करते हुए अदालत का रुख किया था जो आज आगरा, मेरठ, अलीगढ़, दिल्ली, गुड़गांव और उत्तराखंड की 65 राजस्व संपत्ति का हिस्सा है।
सिंह ने अपनी याचिका में यह भी कहा कि वह बेसवान के अविभाज्य राज्य यानी रजवाड़े का उत्तराधिकारी है। उसका भारत संघ में कभी विलय नहीं हुआ। कोर्ट ने अर्जी पर सुनवाई करते हुए याचिका के सुनवाई योग्य होने के सवाल पर कहा कि याचिका पूरी तरह से गलत है। कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और न्यायिक समय की पूरी तरह से बर्बादी है।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि आज भी उनका परिवार एक रियासत का दर्जा रखता है। उनके स्वामित्व वाले सभी क्षेत्र कभी भी भारत सरकार को हस्तांतरित नहीं किए गए। याचिकाकर्ता ने दलील देते हुए कहा कि 1947 में भारत की आजादी के बाद भारत सरकार ने बेसवान अविभाज्य राज्य का कहीं कोई विलय या समझौता नहीं किया और ना कोई संधिपत्र पर दस्तखत किए।
‘विलय तक यहां कोई चुनाव न कराएं’
रिट अर्जी में यह दावा किया गया है कि कोई अधिग्रहण प्रक्रिया भी नहीं हुई थी। इसलिए बेसवान अविभाज्य राज्य आज की तारीख में भी बेसवान परिवार के पास ही है। याचिकाकर्ता ने भारत सरकार को आधिकारिक विलय तक अपने क्षेत्र में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभा या स्थानीय निकाय चुनाव नहीं कराने को कहा है।
अदालत ने खारिज की याचिका
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि सिंह ने केवल कुछ नक्शे और लेख ही दाखिल किए हैं। ये सारे दस्तावेज बेसवान परिवार के अस्तित्व का संकेत नहीं देते हैं। या फिर इस बात पर कोई प्रकाश नहीं डालते हैं कि उन्हें उक्त रियासत का उत्तराधिकार कैसे है? कोर्ट ने उक्त आधार पर सिंह को अर्जी जुर्माने के साथ खारिज कर दी।