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माँ बनी, लेकिन माँ ना बन सकी: डिलीवरी के 12 घंटे बाद बच्ची के सिर से उठा माँ का साया, लापरवाह स्वास्थ्य व्यवस्था ने फिर निगली एक जान

 

बिरगांव, रायपुर : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बिरगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से एक बार फिर दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। 24 साल की साक्षी, जिसने अभी माँ बनने का सुख पाया ही था, डिलीवरी के महज 12 घंटे के भीतर इस दुनिया को अलविदा कह गई। उसकी नवजात बेटी ठीक से आँखें भी नहीं खोल पाई थी कि उसे अपनी माँ की गोद से वंचित कर दिया गया — और इसका कारण बना राज्य का लाचार और लापरवाह स्वास्थ्य तंत्र।

डिलीवरी के बाद बिगड़ी तबीयत, लेकिन नहीं मिला इलाज

5 जून को साक्षी को डिलीवरी के लिए बिरगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया। बच्ची के जन्म के बाद घर और अस्पताल दोनों में खुशी का माहौल था। लेकिन इसी खुशी को मातम में बदलने में स्वास्थ्य विभाग की घोर लापरवाही ने देर नहीं लगाई।

डिलीवरी के करीब 6-7 घंटे बाद रात में साक्षी की तबीयत बिगड़ने लगी। मगर प्रसव केंद्र में उस समय कोई महिला डॉक्टर मौजूद नहीं थी। कुल 3 डिलीवरी और 3 नसबंदी के केस होने के बावजूद, अस्पताल में नियुक्त डॉक्टर ड्यूटी पर नहीं पहुंचे थे। जिस डॉक्टर उपाध्याय की नाइट ड्यूटी लगाई गई थी, वह खुद शारीरिक रूप से अक्षम और मानसिक रूप से परेशान बताए जा रहे हैं।

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सोते रहे स्टाफ नर्स, परिजन लगाते रहे गुहार

अस्पताल में केवल एक पुरुष स्टाफ नर्स मौजूद था, जो दरवाजा बंद कर सो रहा था। परिजन बार-बार उसे उठाते रहे, लेकिन वह कुछ मिनट के लिए आकर फिर गायब हो जाता। इलाज की उम्मीद लगाए बैठे परिजनों को वह धमकाने लगा।

अंततः बेसुध पड़ी साक्षी को बिना जांच-पड़ताल के पानी पिलाया गया और एक इंजेक्शन लगा दी गई। कुछ ही मिनटों बाद साक्षी की सांसें थम गईं। आशंका है कि पानी सांस की नली में चला गया जिससे उसकी मौत हुई।

मौत के बाद भी जारी रहा अपमान

सबसे शर्मनाक पहलू यह रहा कि साक्षी की मौत के बाद भी वही स्टाफ नर्स परिजनों को अपमानित करता रहा। वह बार-बार कहता रहा कि “नाटक कर रही है”, “मुँह में पानी मार दो”, और इसी तरह की अमानवीय बातें।

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पहली बार नहीं, लापरवाही का लंबा इतिहास

यह घटना बिरगांव अस्पताल में हुई पहली लापरवाही नहीं है। दो महीने पहले भी एक महिला की नसबंदी के बाद मौत हुई थी। डिलीवरी के बाद परिजनों से वसूली की शिकायतें भी आम हैं। लेकिन प्रशासन हर बार लीपापोती कर मामले को दबा देता है।

मासूम बेटी की भूख और सिस्टम की भूख

आज एक नवजात बच्ची भूखी है, मुँह में हाथ डाल रही है क्योंकि उसकी माँ अब नहीं है। राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था ने इस बच्ची के सिर से उसकी माँ का साया छीन लिया। साक्षी की मौत केवल एक व्यक्तिगत क्षति नहीं, यह सिस्टम की सामूहिक असफलता का प्रतीक है।

अब सवाल यह है कि क्या जिम्मेदारों को सजा मिलेगी? या फिर इस बार भी मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?

 

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