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CG में शिक्षा विभाग की लापरवाही से ऐतिहासिक स्कूल का गलत मर्जिंग, छात्र-छात्राओं के भविष्य पर संकट

 

जांजगीर-चांपा : राज्य सरकार की युक्तियुक्तकरण नीति को लागू करने में शिक्षा विभाग की लापरवाही अब छात्रों के भविष्य पर भारी पड़ने लगी है। अकलतरा विकासखंड के नरियरा गांव से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां 1907 से संचालित ऐतिहासिक बालक प्राथमिक शाला नरियरा को कन्या पूर्व माध्यमिक शाला नरियरा में मर्ज कर दिया गया है—जबकि दोनों स्कूल भौगोलिक रूप से अलग-अलग दिशाओं में स्थित हैं।

नियमों की अनदेखी, दूरी की बाधा

राज्य शासन के नियमानुसार, स्कूलों का मर्ज केवल तभी किया जाना चाहिए जब वे एक ही परिसर में स्थित हों या ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी आपसी दूरी अधिकतम 1 किलोमीटर हो। लेकिन इस मामले में स्कूलों के बीच की दूरी इस मानक से कहीं अधिक है।

 

छात्र संख्या भी नहीं कर रही मर्जिंग का समर्थन

  • बालक प्राथमिक शाला नरियरा: 59 छात्र
  • बालक पूर्व माध्यमिक शाला नरियरा: 48 छात्र
  • कन्या पूर्व माध्यमिक शाला नरियरा: 111 छात्र
  • कन्या प्राथमिक शाला नरियरा: 73 छात्र

छात्र संख्या के लिहाज से भी मर्जिंग के मापदंड का उल्लंघन किया गया है।

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छात्राओं की पढ़ाई पर संकट, टीसी लेने की नौबत

जिस कन्या स्कूल में बालक स्कूल को मर्ज किया गया है, वहां अब छात्राओं को शिक्षा का अनुकूल वातावरण नहीं मिल रहा। अभिभावकों को आशंका है कि इससे बेटियां स्कूल छोड़ सकती हैं और टीसी निकलवाने की नौबत आ सकती है। यह स्थिति ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की भावना के विरुद्ध मानी जा रही है।

शिक्षकों को घोषित किया गया अतिशेष

मर्जिंग प्रक्रिया में कई शिक्षकों को बिना ठोस आधार के अतिशेष घोषित कर अन्य स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया गया है। बताया गया है कि यह प्रस्ताव अकलतरा BEO कार्यालय द्वारा बिना उचित जांच के भेजा गया, जिसे उच्च अधिकारियों ने भी बिना समीक्षा के मंजूरी दे दी।

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शिक्षा नीति पर उठे सवाल

साझा मंच ने इस मर्जिंग को शिक्षा विभाग की गंभीर प्रशासनिक चूक करार दिया है। उनका कहना है कि एक शताब्दी पुरानी बालक शाला को एक अलग परिसर की कन्या शाला में मर्ज करना, न सिर्फ नियमों की अवहेलना है, बल्कि छात्रों और छात्राओं दोनों के भविष्य से खिलवाड़ है।

मांग: निर्णय पर पुनर्विचार और जिम्मेदारों पर कार्रवाई

स्थानीय स्तर पर इस फैसले का विरोध तेज हो गया है। अब अभिभावक, शिक्षक और सामाजिक संगठन मांग कर रहे हैं कि इस फैसले की समीक्षा की जाए और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई हो।

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