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अनुकंपा नियुक्ति पाने वाले पुत्र का आश्रितों की उपेक्षा करना गलत: हाईकोर्ट ने भरण-पोषण का दिया आदेश, समीक्षा याचिका खारिज

 

बिलासपुर : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि अनुकंपा नियुक्ति पाने वाले व्यक्ति का यह नैतिक और विधिक दायित्व है कि वह मृतक कर्मचारी के आश्रितों का भरण-पोषण करे, जब तक वे आत्मनिर्भर न हो जाएं।

मामला जशपुर जिले का है, जहां छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत कंपनी के दिवंगत कर्मचारी सुरेंद्र खाखा की मृत्यु के बाद उनकी सौतेली पत्नी ने बड़े बेटे को अनुकंपा नियुक्ति दिलाने के लिए सहमति दी थी। शर्त यह थी कि वह मां और छोटे भाई-बहन का पालन-पोषण करेगा। कुछ समय तक ऐसा हुआ, लेकिन शादी के बाद पुत्र ने परिवार से संबंध तोड़ लिया।

 

इसके बाद सौतेली मां ने परिवार न्यायालय में भरण-पोषण की मांग को लेकर याचिका दाखिल की। न्यायालय ने बेटे को आदेश दिया कि वह मां को ₹1000 प्रतिमाह (अथवा उसके पुनर्विवाह तक) और नाबालिग भाई-बहन को ₹3000-₹3000 प्रतिमाह उनके बालिग होने तक भुगतान करे।

 

जनवरी 2023 में भाई-बहन बालिग हो गए, जिसके बाद अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त पुत्र ने आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की। कोर्ट ने सुनवाई के बाद याचिका को खारिज करते हुए पारिवारिक न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा और कहा कि—

“अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य मृतक कर्मचारी के परिवार की आजीविका सुनिश्चित करना है। ऐसे में नियुक्त व्यक्ति का यह नैतिक एवं कानूनी दायित्व है कि वह आश्रितों का सहयोग करे।”

हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि बेटा अपनी सौतेली मां को जीवनभर अथवा उसके पुनर्विवाह तक ₹1000 प्रतिमाह और भाई-बहन को वयस्क होने तक ₹3000-₹3000 प्रतिमाह की दर से भरण-पोषण राशि का भुगतान करे। आदेश की तिथि से उसे ₹7000 प्रतिमाह अदा करने होंगे।

 

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