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देव उठनी एकादशी 2020, श्री भगवान विष्णु जो कि पांच महीने से विश्राम कर रहे है वे 25 नवम्बर को एकादशी पर जागेंगे

शुक्र तारा उदित होने के बाद 22 अप्रैल से फिर विवाह मुहूर्त की शुरुआत होगी। जुलाई के पहले पखवाड़े तक शुभ मुहूर्त रहेंगे। इसके बाद पुनः चातुर्मास शुरू हो जाने से विवाह के मुहूर्त नहीं होंगे।

रायपुर। देव उठनी एकादशी 2020, इस साल 2020 में हिंदू पंचांग के अनुसार एक और पुरुषोत्तम मास पड़ने से चातुर्मास चार की बजाय पांच महीने तक मनाया गया। इस दौरान एक जुलाई को देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु के क्षीरसागर में चले जाने से विवाह एवं अन्य शुभ संस्कारों पर रोक लगी हुई थी। इस दिन पांच महीने से विश्राम कर रहे भगवान विष्णु के जागने की परंपरा निभाई जाएगी।

इसी दिन भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम का विवाह माता तुलसी से कराने की परंपरा निभाई जाएगी। इसके बाद फिर से विवाह मुहूर्त शुरू हो जाएंगे। इस महीने नवंबर में मात्र तीन और अगले महीने दिसंबर में चार मुहूर्त ही विवाह के लिए श्रेष्ठ हैं।

मकर राशि में गुरु शनि की दशा

ज्योतिषाचार्य डा. दत्तात्रेय होसकेरे के अनुसार, 59 साल बाद देवउठनी एकादशी पर गुरु, शनि की दशा मकर राशि में रहेगी। इसी दिन उत्तराभाद्रपद नक्षत्र भी पड़ रहा है। भगवान गणेश जी का वार बुधवार होने से आने वाले एक साल तक स्थितियां सुखद रहेंगी।

घर-घर में सजाएंगे गन्ने के मंडप

शालिग्राम का विवाह तुलसी के पौधे के साथ कराने की परंपरा निभाने के लिए घर-घर में तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। गन्ने का मंडप बनाकर तुलसी के पौधे को सजाया जाएगा और फिर विष्णु स्वरूप शालिग्राम रूपी पत्थर के साथ विवाह कराया जाएगा।

सती वृंदा ने दिया था विष्णु को श्राप

कथा प्रसंग के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि राक्षस जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने उसकी पत्नी सती वृंदा के साथ छल किया था। इसके पश्चात वृंदा ने विष्णु को श्राप देकर पत्थर का बना दिया था। देवताओं की विनती के बाद सती वृंदा ने अपना श्राप वापस लेकर विष्णु को उनके असली रूप में आने का वचन दिया। यह भी मान्यता है कि वृंदा के सती होने के बाद उनकी राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ था। इसके बाद तुलसी पौधे के साथ शालिग्राम का विवाह रचाने की परंपरा शुरू हुई।

अबूझ मुहूर्त

शास्त्रों में तीन अबूझ मुहूर्त माने गए हैं। इनमें अक्षय तृतीया, वसंत पंचमी और देवउठनी एकादशी है। बिना कुंडली, मुहूर्त देखे कोई भी शुभ संस्कार इस दिनों में किया जा सकता है। इसी मान्यता के कारण देवउठनी एकादशी से शुभ संस्कार शुरू हो जाते हैं।

नवंबर में दो, दिसंबर में चार मुहूर्त

नवंबर में मात्र दो मुहूर्त 25 नवंबर और 30 नवंबर को ही श्रेष्ठ हैं और दिसंबर में एक, सात, नौ और 11 दिसंबर के चार मुहूर्त श्रेष्ठ हैं।

15 दिसंबर से 14 जनवरी मलमास होगा

इसके बाद अगले महीने 15 दिसंबर को मलमास शुरू हो जाने से फिर विवाह मुहूर्त पर रोक लग जाएगी। 14 जनवरी तक मलमास रहेगा।

गुरु तारा अस्त होने से विवाह नहीं होगी

विवाह के लिए गुरु तारा यानी गुरु ग्रह का उदित होना आवश्यक माना जाता है। चूंकि जनवरी 2021 में ही गुरु तारा अस्त हो जाएगा, जो फरवरी तक अस्त रहेगा इसलिए विवाह मुहूर्त नहीं हैं।

होलाष्टक और मीन मलमास कब होगा।

16 फरवरी से 17 अप्रैल तक शुक्र तारा अस्त रहेगा। साथ ही इसी बीच मार्च महीने में होलाष्टक और 14 मार्च से 14 अप्रैल तक मीन मलमास भी विवाह के लिए कारक नहीं होते। इस दौरान कोई भी संस्कार नहीं किए जा सकेंगे।

22 अप्रैल से फिर विवाह आरंभ

शुक्र तारा उदित होने के बाद 22 अप्रैल से फिर विवाह मुहूर्त की शुरुआत होगी। जुलाई के पहले पखवाड़े तक शुभ मुहूर्त रहेंगे। इसके बाद पुनः चातुर्मास शुरू हो जाने से विवाह के मुहूर्त नहीं होंगे।

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