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नक्सल मुक्त बस्तर पर सियासी संग्राम: केंद्र की रिपोर्ट बनाम ज़मीनी सच्चाई, अब नजरें विकास पर….

 

रायपुर : छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र को लेकर नक्सलवाद की बहस एक नई करवट ले चुकी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक बस्तर को लेफ्ट विंग एक्स्ट्रीमिज्म (LWE) प्रभावित जिलों की सूची से आधिकारिक रूप से बाहर कर दिया गया है। यानी अब केंद्र सरकार की नज़रों में बस्तर “नक्सलमुक्त” हो चुका है। लेकिन इस रिपोर्ट ने सियासी गलियारों में जुबानी जंग तेज कर दी है।

क्या है LWE और क्यों है यह महत्वपूर्ण?

LWE यानी वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र—केंद्र सरकार द्वारा चिन्हित वे जिले जहां नक्सली गतिविधियां लंबे समय से जारी रही हैं। इन जिलों को विकास कार्यों के लिए विशेष फंडिंग मिलती रही है। 2012 से 2022 तक केंद्र ने छत्तीसगढ़ सहित 10 राज्यों के 48 जिलों को योजना में शामिल किया था और 401.28 करोड़ रुपये का बजट जारी किया गया था।

अब अप्रैल 2025 से केंद्र ने बस्तर जिले को इस सूची से बाहर करते हुए फंडिंग स्थगित कर दी है। यानी एक बड़ा प्रशासनिक संदेश—बस्तर अब नक्सल संकट से उबर चुका है।

 

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मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का दावा

“हमने मार्च 2026 तक नक्सलवाद के पूरी तरह से खात्मे का लक्ष्य रखा है। हमारे जवान बहादुरी से लड़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की सोच है कि देश नक्सलवाद से मुक्त हो और छत्तीसगढ़ अब इस दिशा में अग्रसर है।”

 

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कैबिनेट मंत्री रामविचार नेताम का बयान

“यह निर्णायक लड़ाई थी। जवानों की कुर्बानी और हमारी सरकार की रणनीति का परिणाम है कि आज बस्तर नक्सली मुक्त घोषित हो चुका है। 2026 तक बचे-खुचे नक्सलियों का भी सफाया हो जाएगा।”

विपक्ष का संशय : “सिर्फ रिपोर्ट नहीं, ज़मीनी हकीकत भी देखें”

पूर्व मंत्री अमरजीत भगत ने कहा, “शांति हर कोई चाहता है लेकिन यह रिपोर्ट कितनी निष्पक्ष है, ये सवाल है। जब बस्तर की जनता कहेगी कि बस्तर शांत हो गया, तब माना जाएगा कि सचमुच नक्सलवाद खत्म हुआ। सरकारें अक्सर अपनी पीठ थपथपाती हैं, लेकिन सच्चाई ज़मीन पर दिखनी चाहिए। बेगुनाहों की सुरक्षा ज़रूरी है।”

क्या सिर्फ ‘नक्सल मुक्त’ होना काफी है?

राजनीति और सुरक्षा विश्लेषकों की मानें तो किसी क्षेत्र को सिर्फ प्रशासनिक श्रेणी से बाहर करना “शुरुआत है, मंज़िल नहीं”। असली चुनौती अब बस्तर के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास को लेकर है। वर्षों तक संघर्ष और हिंसा की चपेट में रहे क्षेत्र में अब स्थायी शांति, निवेश, बुनियादी ढांचे और रोजगार जैसे मुद्दों पर ठोस काम करना होगा।

बस्तर का LWE श्रेणी से बाहर होना एक बड़ी नीतिगत जीत है। लेकिन जैसे ही केंद्र ने फंड रोक दिए, अब विकास की असली परीक्षा शुरू हुई है। सरकार अगर अगले दो वर्षों में बस्तर को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बना पाती है, तभी यह जीत टिकाऊ मानी जाएगी। वरना विपक्ष की सियासी तलवार “कागज़ों पर नक्सलमुक्त” कहकर सत्ता पक्ष की उपलब्धियों पर सवाल उठाती रहेगी।

 

 

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