रायपुर। एक अति पिछड़े आदिवासी (Tribal) परिवार का बेटा सुरेश जगत आइएएस अफसर (IAS officer) बन गया। गांव के ज्यादातर लोगों की समझ में अफसर ही आता है। आइएएस अफसर क्या होता है उन आदिवासियों (Tribals) को नहीं मालूम। वो तो बस मांदर की थाप पर नाचे जा रहे हैं। पूरा गांव खुशी से झूम रहा है। कोरबा के परसदा गांव के लोगों के लिए सुरेश जगत की ये सफलता किसी अजूबे से कम नहीं है।
गांव में चलता था गनत़ंत्र
यह गांव धुर नक्सलवाद प्रभावित गांवों (Naxalite affected village,) की श्रेणी में आता है। यहां बोली से ज्यादा गोली चलती है। गणत़ंत्र की बजाय गनत़ंत्र चलता है। किसी को भी जनअदालत में ले जाकर उसे भीड़ के सामने ही जमकर पीटा जाता है। उसके बाद धारदार हथियार से उसका गला रेत दिया जाता है। इसके बाद उसे पुलिस का मुखबिर बता दिया जाता है। लोगों की खुशी का एक कारण ये भी है कि यहां गनतंत्र पर आज ज्ञानतंत्र हावी हुआ है।
हौसलों से उड़ान होती है
हम बात परवाज की नहीं करते हौसलों से उड़ान होती है। जी हां इसी को अपने जीवन का मूलमंत्र बनाया सुरेख जगत ने और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज उसी पिछड़े इलाके का एक बेटा आइएएस अफसर बनकर आगे खड़ा है।
परिवार का पेट पालने की नौकरी
सुरेश जगत बताते हैं कि उनके परिजन काफी गरीब थे। पढाई में हमेशा अच्छे अंक लाने वाले सुरेश की आंखों में अफसर बनने का ख्वाब पल रहा था। हाई स्कूल की परीक्षा में सुरेश जगत ने 90 फीसदी अंक हासिल किए थे। ऐसे में उसने गांव छोड़ा और शहर आ गया। यहां उसने नौकरी की। लगातार मेहनत करता रहा। उसके बाद उसने यूपीएससी की परीक्षा (UPSC exam) पास कर आइएएस अफसर बन गया।