रायपुर

हसदेव अरण्य को बचाने 10 दिन चलकर पदयात्रा पहुंची राजधानी, मंत्री टी.एस. सिंह देव पदयात्रियों से मुलाकात कर कहा- यूपीए सरकार के नो-गो का पालन होना चाहिए

रायपुर। हसदेव बचाओ पदयात्रा 4 अक्टूबर 2021 से मदनपुर गांव से शुरू होकर आज 13 अक्टूबर 2021 को राजधानी रायपुर पहुंची है। जहां सभी आंदोलनकारियों से टिकरापारा स्थित ताराचंद सभागृह में पंचायत एवं स्वास्थ्य मंत्री टी. एस. सिंहदेव ने मिलने पहुंचे।
इस दौरान पदयात्रियों को संबोधित करते हुए मंत्री सिंहदेव ने कहा कि हसदेव अरण्य को बचाने का आप लोगों का संघर्ष एक महत्त्वपूर्ण संघर्ष है। आज पर्यावरणीय चिंताओं के परिदृश्य में कोयला खनन अत्यंत घातक है और यह आवश्यकता है कि अक्षय ऊर्जा की ओर हम आगे बढ़े। उन्होंने हसदेव अरण्य के संबंध में स्पष्ट रूप से कहा कि यह माइनिंग के लिए नो-गो क्षेत्र घोषित किया गया था। अतः नो-गो की इस अवधारणा पर अमल होना चाहिये।

हसदेव अरण्य क्षेत्र को बचाने, ग्राम सभाओं के अधिकारों के हनन के खिलाफ न्याय की गुहार लगाने 300 की॰मी॰ 10-दिन पैदल चलकर हसदेव बचाओ पदयात्रा पहुंची रायपुर.

पिछले एक दशक से लगातार हसदेव अरण्य को बचाने के लिए यहाँ पर निवासरत गोंड, उरांव, पंडो एवं कंवर आदिवासी समुदाय संघर्षरत है । कोयला खनन परियोजनाओं का हसदेव अरण्य क्षेत्र की 20 ग्राम सभाओं ने, पाँचवी अनुसूची, पेसा कानून 1996 तथा वनाधिकार मान्यता कानून 2006 से प्रदत्त शक्तियों का उपयोग कर, सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर लगातार विरोध किया। इस संबंध में तथा खनन परियोजनाओं के आवंटन एवं स्वीकृति प्रक्रियाओं में गड़बड़ियों को उजागर करते हुए हजारों पत्र लिखे गए.


प्रत्येक स्तर पर – तहसील, ज़िला, राज्य तथा राष्ट्रीय – संवाद एवं अनुरोध के कई प्रयास भी किये। लोकतान्त्रिक माध्यम से विरोध कर अनेकों रैलि, धरना, सम्मेलन, 75-दिवसीय प्रदर्शन भी किए. संविधान तथा कानूनों के तहत मिले सभी अधिकारों का उपयोग कर आदिवासी समुदाय अपने जल-जंगल-ज़मीन तथा उसपर निर्भर जीवन-यापन, आजीविका और संस्कृति को बचाने के हर संभव प्रयास भी किए हैं | परंतु इन सब प्रयासों और भारी जनविरोध के बावजूद, सभी प्रक्रियाओं की धज्जियाँ उड़ाकर, आदिवासी समुदाय के लिए बनी कानूनी व्यवस्था (पाँचवी अनुसूची, पेसा कानून 1996 तथा वनाधिकार मान्यता कानून 2006, इत्यादि) को नज़रअंदाज़ कर लगातार खनन परियोजनाओं को आगे बढ़ाया जा रहा है | इसमें स्थानीय शासन-प्रशासन की भूमिका अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है जोकि जबरन सारे विरोध को कुचल कर, गैरकानूनी रूप से खनन परियोजनाओं को शुरू करने पर उतारू है।

ऐसी स्थिति में, अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने, हसदेव-अरण्य क्षेत्र को बचाने, खनन परियोजनाओं का जन-विरोध और ग्राम-सभाओं के संकल्प को बतलाने, तथा न्याय की गुहार लगाने बड़ी संख्या में क्षेत्र के आदिवासी ग्रामीण हसदेव बचाओ पदयात्रा करके ग्राम फतेपुर सरगुजा ज़िला से रायपुर आये है । गांधी जयंती (2 अक्टूबर) के पावन अवसर पर उनके विचारों और मूल्यों को साथ लेकर, यह पदयात्रा हसदेव अरण्य की ग्राम सभाओं के संकल्प – पूरे हसदेव अरण्य को संरक्षित करने उसपर निर्भर जीवन-यापन, आजीविका और संस्कृति को बचाने – को दोहरा रही है.

पदयात्रा कर पहुंचे आदिवासी मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल से मिलेंगे
14 अक्टूबर को हसदेव अरण्य से आए हुए ग्रामवासी बूढ़ा-तालाब के निकट धारणा प्रदर्शन और सम्मेलन आयोजित करेंगे | उन्होने मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल से मिलने का समय मांगा है. राज्यपाल सुश्री अनुसूइया ऊईके ने पदयात्रियों के एक दल से संवाद का समय दिया है जबकि मुख्यमंत्री कार्यालय से अब तक संवाद के आवेदन पर कोई सूचना नहीं मिल पायी है.

हसदेव अरण्य क्षेत्र से जुड़े महत्वपूर्ण बिन्दु

छत्तीसगढ़ में सरगुजा एवं कोरबा जिलों में स्थित हसदेव अरण्य वन क्षेत्र मध्य भारत के सबसे समृद्ध, जैव विविधता से परिपूर्ण वन-क्षेत्रों में गिना जाता है जिसको अकसर “छत्तीसगढ़ के फेफड़ों” की संगति भी दी जाती है वैसे तो इस क्षेत्र को 2010 में नो-गो क्षेत्र घोषित किया गया था परंतु बड़े-पैमाने पर कोयला खदानों का आवंटन किया गया है जिससे इस सम्पूर्ण क्षेत्र के विनाश के बादल लगातार मंडरा रहे हैं. यह क्षेत्र हसदेव नदी एवं बांगों बांध का कैचमेंट भी है जिससे जांजगीर-चांपा ज़िले की लगभग 3 लाख हेक्टेयर द्वि-फ़सलीय भूमि सींचित होती है. यह सम्पूर्ण क्षेत्र पाँचवी अनुसूची में आता है जहां पेसा कानून 1996 तथा वनाधिकार मान्यता कानून 2006 के सभी प्रावधान लागू होते हैं. हाल ही में आई भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) की रिपोर्ट के अनुसार हसदेव अरण्य क्षेत्र को कोयला खनन से अपरिवर्तनीय क्षति होगी जिसकी भरपाई कर पाना कठिन है। इस अध्ययन में हसदेव के पारिस्थितिक महत्व और खनन से हाथी मानव द्वंद के बढ़ने का भी उल्लेख है।
हमारी मांगें
● हसदेव अरण्य क्षेत्र की समस्त कोयला खनन परियोजनाओं को निरस्त किया जाए.
● बिना ग्राम सभा सहमति के कोल बीयरिंग एक्ट 1957 के तहत किए गए सभी भूमि-अधिग्रहण को तत्काल निरस्त किया जाए.
● पाँचवी अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी कानून से भूमि-अधिग्रहण प्रक्रिया के पूर्व ग्राम सभा से अनिवार्य सहमति लेने के प्रावधान को लागू किया जाए.
● परसा कोल ब्लॉक के लिए फ़र्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई वन स्वीकृति को तत्काल निरस्त किया जाए एवं ग्राम सभा का फ़र्जी प्रस्ताव बनाने वाले अधिकारी और कंपनी पर FIR दर्ज किया जाए.
● घाटबर्रा के निरस्त सामुदायिक वनाधिकार को बहाल करते हुए सभी गाँव में सामुदायिक वन संसाधन और व्यक्तिगत वन अधिकारों को मानिता दी जाए.
● पेसा कानून 1996 का पालन हो.

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