देश भर में मंदिर मस्जिद और हिंसा चल रहा है, उप्र के सम्बल में क्या हो रहा है, ये तो आप सबको पता ही है, इसी बीच अब अजमेर सरीफ के दरगाह को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है,इस विवाद की शुरुआत हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की एक याचिका से हुई, विष्णु गुप्ता ने अजमेर दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित करने की मांग कर डाली है, इसको लेकर अजमेर की अदालत ने 27 नवंबर को इस याचिका के आधार पर दरगाह के सर्वेक्षण को मंजूरी दी। इसके बाद से इस मुद्दे को लेकर जमकर सियासत जारी है। जानिए आखिर अजमेर दरगाह को लेकर क्या है पूरा विवाद?
दरअसल विष्णु गुप्ता की ओर से कोर्ट में पेश याचिका में उन्होंने 168 पेज की ‘अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव‘ किताब के पेज नं. 93, 94, 96 और 97 का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि जब मैंने हरबिलास शारदा की किताब को पढ़ा, तो उसमें साफ-साफ लिखा था कि यहां पहले ब्राह्मण दंपती रहते थे। यह दंपती सुबह चंदन से महादेव का तिलक करते थे और जलाभिषेक करते थे।
याचिका में पहला तर्क है कि दरगाह में मौजूद बुलंद दरवाजा की बनावट हिंदू मंदिर के दरवाजों की तरह है, इनकी नक्काशी को देखकर यही अंदाजा लगाया जा सकता है, कि दरगाह से पहले यहां हिंदू मंदिर रहा होगा।
2. दरगाह के ऊपरी हिस्से को देखे, तो वहां हिंदू मंदिरों के अवशेष जैसी चीजें दिखती हैं। इनके गुंबदों को देखकर आसानी से समझा जा सकता है कि किसी हिंदू मंदिर को तोड़कर यहां दरगाह का निर्माण करवाया गया।
3. विष्णु गुप्ता का तीसरा तर्क, देश में जहां भी शिव मंदिर हैं, वहां पानी और झरने जरूर होते हैं, ऐसा ही अजमेर दरगाह में भी है।
वही अजमेर दरगाह केस मामले पर सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि दरगाह पिछले 800 सालों से यहीं है। नेहरू से लेकर सभी प्रधानमंत्री दरगाह पर चादर भेजते रहे हैं, लेकिन बीजेपी-आरएसएस ने मस्जिदों और दरगाहों को लेकर इतनी नफरत क्यों फैलाई है? उन्होंने कहा कि पीएम मोदी भी वहां चादर भेजते हैं, फिर निचली अदालतें प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुनवाई क्यों नहीं कर रही हैं? इस तरह कानून का शासन और लोकतंत्र कहां जाएगा? यह देश के हित में नहीं है। पीएम मोदी और आरएसएस का शासन देश में कानून के शासन को कमजोर कर रहा है। यह सब बीजेपी-आरएसएस के निर्देश पर किया जा रहा है।
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