
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मातृत्व अवकाश को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि मां बनना एक महिला के जीवन की स्वाभाविक और खूबसूरत घटना है, और इससे जुड़ा अवकाश उसका मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जैविक, सरोगेसी या गोद लेने वाली मां के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।
यह फैसला रायपुर के IIM में कार्यरत एक महिला अधिकारी की याचिका पर आया, जिन्होंने 2 दिन की नवजात बच्ची को गोद लिया था। उन्होंने 180 दिन की चाइल्ड एडॉप्शन लीव के लिए आवेदन किया था, लेकिन संस्थान ने उन्हें केवल 60 दिन की परिवर्तित छुट्टी दी और बाद में 84 दिन तक सीमित कर दिया।
महिला अधिकारी के वकील ने दलील दी कि जब संस्थान की नीति में स्पष्ट प्रावधान नहीं हो, तो केंद्र सरकार के नियम लागू होते हैं। केंद्रीय सिविल सेवा (छुट्टी) नियम 1972 के नियम 43-बी और 43-सी के तहत गोद लेने वाली मां को भी 180 दिन की छुट्टी का अधिकार है।
हाईकोर्ट ने कहा:
“मातृत्व अवकाश कोई छूट नहीं, यह एक मौलिक अधिकार है। बच्चे के जीवन के पहले वर्ष में मां की उपस्थिति और स्नेह अत्यंत आवश्यक है। इस दौरान बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास होता है, और मां के साथ स्नेह का बंधन बनता है। उसे दूसरों पर निर्भर नहीं छोड़ा जा सकता।”
कोर्ट ने संस्थान के 84 दिन की छुट्टी के आदेश को रद्द करते हुए निर्देश दिया कि अधिकारी को शेष 96 दिन की छुट्टी तत्काल दी जाए।