
गया गया में पितरों का श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है. गया को विष्णु का नगर माना जाता है.यह मोक्ष की भूमि कहलाती है. विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है. विष्णु पुराण के मुताबिक,गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग चले जाते हैं. माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे ‘पितृ तीर्थ’ भी कहा जाता है.
गया में पिंडदान करने के लिए देश भर से हजारो लोग पहुंच रहे है वही देश के विभिन्न राज्यों से मोक्षधाम पहुंचे करीब 30 हजार श्रद्धालुओं ने वेदी स्थलों पर पिंडदान किया.लोगों ने अपने कुल पंडा के निर्देशन में यह पिंडदान पूरा कर रहे है.वेदी स्थलों पर श्रद्धालुओं के पिंडदान का सिलसिला सूर्योदय से सूर्यास्त तक जारी रहा.
देशभर में वैसे तो कई अलग-अलग स्थानों पर पिंडदान किया जाता है, लेकिन कुछ विशेष जगहों पर पिंडदान करना ज्यादा बेहतर माना जाता है इनमे गया, वाराणसी, हरिद्वार, जगन्नाथ पुरी, बद्रीनाथ,मथुरा और इलाहाबाद प्रमुख स्थान है.
बता दें की अनंत चतुर्दशी यानी 19 सितंबर से शुरू 17 दिवसीय पितृपक्ष श्राद्ध के छठे दिन ब्रह्म सरोवर, काकबली वेदी व आम्र सिंचन वेदी पर पिंडदान करने का विधान व परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. वायु पुराण व नारद पुराण सहित अन्य कई हिंदू धार्मिक ग्रंथों में ब्रह्म सरोवर पर पिंडदान का कर्मकांड करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों को ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है साथ ही उनके माता कुल का भी उद्धार होता है.
इन वेदियों पर पिंडदान का है विधान
गया जी में 17 दिवसीय पितृपक्ष श्राद्ध के सातवें दिन रुद्र पद, ब्रह्म पद, विष्णुपद श्राद्ध खीर व मावा पिंड व पांव पूजा का विधान है.कहा जाता है कि रुद्र पद में पिंडदान करने से शिव लोक, ब्रह्म पद में पिंडदान करने से ब्रह्म लोक व विष्णुपद में पिंडदान करने से विष्णु लोक की प्राप्ति पिंडदान करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों को होती है.