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हाईकोर्ट का अहम फैसला: पुजारी मंदिर की संपत्ति के मालिक नहीं, केवल सेवक

 

बिलासपुर :  छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि मंदिर की संपत्ति पर पुजारी का स्वामित्व नहीं होता। कोर्ट ने कहा कि पुजारी केवल देवता की पूजा करने और मंदिर के सीमित प्रबंधन के लिए नियुक्त प्रतिनिधि होता है, न कि संपत्ति का स्वामी।

 

यह फैसला हाईकोर्ट के जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की एकलपीठ ने धमतरी जिले के श्री विंध्यवासिनी मां बिलाईमाता मंदिर के पुजारी परिषद अध्यक्ष मुरली मनोहर शर्मा की याचिका पर सुनाया। शर्मा ने राजस्व मंडल बिलासपुर के 3 अक्टूबर 2015 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई थी।

 

कहां से शुरू हुआ विवाद?

 

मुरली मनोहर शर्मा ने तहसीलदार से अनुरोध किया था कि उनका नाम मंदिर ट्रस्ट के रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए। तहसीलदार ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन एसडीओ ने उसे रद्द कर दिया। इसके बाद शर्मा ने अपर आयुक्त रायपुर के समक्ष अपील की, जिसे खारिज कर दिया गया। उन्होंने राजस्व मंडल में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की, जिसे भी अस्वीकार कर दिया गया। इसके विरुद्ध शर्मा ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

 

कोर्ट की टिप्पणी

 

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि विंध्यवासिनी मंदिर ट्रस्ट समिति 23 जनवरी 1974 से विधिवत पंजीकृत संस्था है और मंदिर की संपत्ति का वैधानिक प्रबंधन उसी के पास है। कोर्ट ने 21 सितंबर 1989 को सिविल जज, वर्ग-2, धमतरी द्वारा पारित फैसले का हवाला देते हुए कहा कि ट्रस्ट समिति किसी व्यक्ति को प्रबंधक नियुक्त कर सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह संपत्ति का मालिक बन जाएगा।

 

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि पुजारी एक **“ग्राही”** (धारक) होता है, जो पूजा-पाठ की जिम्मेदारी निभाता है। यदि वह अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता है, तो यह अधिकार उससे छीना भी जा सकता है।

 

मंदिरों से जुड़े विवादों के लिए मार्गदर्शक

 

कोर्ट का यह फैसला उन मामलों के लिए मिसाल बन सकता है, जहां पुजारियों और मंदिर ट्रस्टों के बीच संपत्ति को लेकर विवाद होता है। अदालत ने कहा कि धार्मिक सेवा का अधिकार और संपत्ति पर स्वामित्व – दोनों अलग-अलग बातें हैं। पुजारी केवल धार्मिक सेवा के लिए नियुक्त होता है, उसे संपत्ति पर कोई स्वामित्व नहीं होता।

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