मद्रास। मंदिरों में बढ़ती वीआईपी दर्शन संस्कृति पर मद्रास हाईकोर्ट ने करारा प्रहार करते हुए कहा, कि वीआईपी ही केवल भगवान हैं। कोई भी वीआईपी पाप करता है अगर वो भक्तों की परेशानी का कारण बन रहा हो तो। ऐसे उसे भगवान कभी माफ नहीं करेंगे। विभिन्न सरकारी विभागों के वीआईपी श्रेणी में आने वाले अधिकारियों। उनके साथ आने वालों, अन्य भक्तों या दानदाताओं को मंदिर में अलग लाइन लगाकर विशेष दर्शन की सुविधा नहीं दी जानी चाहिए।
तूतीकोरिन जिले में तिरुचेंदुर के प्रसिद्ध अरुलमिगु सुब्रमनिया स्वामी मंदिर से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने कहा कि वीआईपी संस्कृति से, खासकर मंदिरों में, लोग परेशान हो चुके हैं। वीआईपी प्रवेश की सुविधा केवल संबंधित व्यक्ति अथवा उसके परिजनों को ही मिलनी चाहिए, रिश्तेदारों को नहीं। इसमें कोई संदेह नहीं कि कुछ लोगों को विशेष दर्शन की सुविधा दी जा सकती है। हालांकि यह भी केवल उन लोगों के लिए है, जो विशेष पदों पर हैं। यह उनके पद के लिए है, व्यक्तिगत रूप से नहीं। ज्यादातर विकसित देशों में केवल उच्च पदों के कुछ लोगों को अभिरक्षा दी जाती है, जिन्हें संविधान में गणमान्य माना गया है। बाकी को अपनी सुरक्षा का खुद इंतजाम करना होता है। इस तरह की विशेष सुविधा लोगों के समानता के अधिकार के आड़े नहीं आनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि मंदिर जैसे स्थान पर वीआईपी के विशेष दर्शन के कारण भक्त परेशान होते हैं और व्यवस्था को कोसते हैं। मंदिर प्रशासन का काम है कि वीआईपी दर्शन की व्यवस्था इस प्रकार करे कि आम लोगों को किसी भी तरह की परेशानी नहीं हो। तमिलनाडु सरकार वीआईपी की लिस्ट अधिसूचित कर चुकी है। वीआईपी के साथ सुरक्षा गार्ड और स्टाफ भी होते हैं। यह ध्यान रखा जाए कि वीआईपी के साथ उनके स्टाफ को वीआईपी दर्शन की सुविधा न मिले। स्टाफ को केवल शुल्क वाली अथवा सामान्य लाइनों में दर्शन की अनुमति हो।
न्यायाधीश ने कहा कि भक्त अपने धार्मिक विश्वास के कारण भगवान से प्रार्थना करने आते हैं। उनके बीच कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। वीआईपी भी मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं तो भक्त के रूप में ही।
मद्रास हाईकोर्ट ने भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) में सरकार का हिस्सा बेचने के लिए वित्त विधेयक एवं बीमा कंपनी के अधिनियम में किए बदलावों को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है।
मुख्य न्यायाधीश एमएन भंडारी व न्यायमूर्ति डी भरत चक्रवर्ती की पीठ ने एल पोनम्मल की जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा, आईपीओ लाने के लिए एलआईसी अधिनियम में धन विधेयक के जरिये किए गए बदलाव असांविधानिकनहीं हैं।
बीमा कंपनी की पॉलिसीधारक पोनम्मल ने याचिका में कहा था कि एलआईसी में सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री के लिए अधिनियम में बदलाव करने के लिए धन विधेयक का गलत तरीका अपनाया गया था। संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत धन विधेयक लाकर नियमों में बदलाव किए गए, जबकि यह धन विधेयक की परिभाषा में ही नहीं आता है। पीठ ने कहा, इस बारे में लाए विधेयक को धन विधेयक के रूप में पेश करने की दी गई लोकसभा अध्यक्ष की स्वीकृति को चुनौती नहीं दे सकते। उनका निर्णय ही अंतिम रूप से मान्य होगा।