
रायपुर : छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था इन दिनों एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है। राज्य सरकार द्वारा शुरू किए गए युक्तियुक्तकरण अभियान ने एक ओर जहां शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का दावा किया है, वहीं दूसरी ओर इस फैसले ने प्रदेश की राजनीति और शिक्षक समुदाय को दो फाड़ कर दिया है। सवाल उठता है—क्या यह फैसला वास्तव में एक “युक्ति” है, या फिर शिक्षा तंत्र के लिए एक “चूक”?
सरकार का दावा: संसाधनों का समुचित उपयोग, पढ़ाई में गुणवत्ता
राज्य सरकार का मानना है कि युक्तियुक्तकरण के जरिए स्कूलों में शिक्षकों की तैनाती को छात्र संख्या के आधार पर संतुलित किया जाएगा। उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने स्पष्ट किया है कि किसी स्कूल को बंद नहीं किया जा रहा है, बल्कि जहां छात्रों की संख्या कम है, वहां की संरचना को प्रभावी बनाने की दिशा में यह कदम जरूरी है।
“कई स्कूलों में छात्र कम और शिक्षक अधिक हैं, यह व्यवस्था अक्षम है। हम एक संतुलित और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रणाली खड़ी करना चाहते हैं,”
— विजय शर्मा, उप मुख्यमंत्री
विरोध की आग: कांग्रेस और शिक्षक संगठन सड़कों पर
वहीं दूसरी तरफ, इस अभियान के खिलाफ शिक्षक संगठनों और विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने मोर्चा खोल दिया है। शालेय शिक्षक संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र दुबे ने इसे “शिक्षा का विनाश” बताते हुए कहा कि बिना किसी सर्वे या संवाद के इस नीति को लागू किया गया है, जो बच्चों की पढ़ाई और शिक्षकों के भविष्य दोनों पर चोट है।
“यह सुधार नहीं, ग्रामीण शिक्षा का गला घोंटना है। स्कूल बंद होने से बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाएंगे,”
— वीरेंद्र दुबे, अध्यक्ष, शालेय शिक्षक संघ
कांग्रेस का चार चरणों में आंदोलन, यात्रा की भी तैयारी
प्रदेश कांग्रेस इस मुद्दे पर आक्रामक रणनीति अपना रही है। PCC चीफ दीपक बैज ने एलान किया है कि चार चरणों में आंदोलन होगा। आज NSUI ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा है, 9 जून से DEO दफ्तरों का घेराव होगा और अंतिम चरण में राज्यव्यापी यात्रा निकाली जाएगी जिसमें प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता हिस्सा लेंगे।
“यह सरकार शिक्षा के नाम पर छलावा कर रही है, हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे,”
— दीपक बैज, प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस
सवाल बड़ा है: सुधार या नुकसान?
युक्तियुक्तकरण को लेकर जहां सरकार अपने फैसले पर अडिग है, वहीं विरोध करने वालों का तर्क है कि इससे खासकर ग्रामीण और दूरस्थ अंचलों के बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाएंगे। राजनीतिक गलियारों में यह मुद्दा लगातार गरमाता जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में युक्तियुक्तकरण महज एक प्रशासनिक निर्णय नहीं रह गया है, बल्कि यह अब शिक्षा की नीति बनाम सियासत की लड़ाई का रूप ले चुका है। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में सरकार इस मुद्दे पर किस तरह संवाद स्थापित करती है और क्या वाकई यह अभियान प्रदेश की शिक्षा को “सशक्त” बना पाएगा या “संवेदनशील” सवालों में घिर जाएगा?