
रायपुर:- चैत्र नवरात्रि का आज तीसरा दिन दिनांक 1 अप्रैल को मनाया जा रहा है। चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन माता के नव स्वरूपों में से माता के चंद्रघंटा स्वरूप के रूप में माता की पूरे विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है।बात करे अगर माँ चंद्रघंटा के स्वरूप की तो माता के मस्तक पर अर्ध चंद्रमा विराजमान है, जिस कारण ही इन्हें चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की अपनी गाथाएं हैं। माथे पर अर्धचंद्र लिए माता दैत्यों का नाश करती हैं।
जानिए माता चंद्रघंटा की उत्पति की कथा
पौराणिक किवदंतियों के अनुसार एक समय पर स्वर्ग पर राक्षसों का उपद्रव बढ़ने पर दुर्गा मैया ने चंद्रघंटा माता का रूप धारण किया था। महिषासुर नमक दैत्य ने सभी देवताओं को परेशान कर रखा था। महिषासुर स्वर्ग लोक पर अपना अधिकार जमाना चाहता था और सभी देवताओं से युद्ध कर रहा था। महिषासुर के आतंक से परेशान सभी देवता भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास जा पहुंचे। सभी देवताओं ने खुद पर आई विपदा का वर्णन त्रिदेवों से किया और मदद मांगी। देवताओं की विनती और असुरों का आतंक देख त्रिदेव को बहुत गुस्सा आया। त्रिदेवों के क्रोध से एक ऊर्जा निकली। इसी ऊर्जा से माता चंद्रघंटा देवी अवतरित हुई। माता के अवतरित होने पर सभी देवताओं ने माता को उपहार दिया। माता चंद्रघंटा को भगवान शिव ने अपना त्रिशूल, श्री हरि विष्णु जी ने अपना चक्र, सूर्य ने अपना तेज, तलवार, सिंह और इंद्र ने अपना घंटा माता को भेंट के रूप में दिया। अस्त्र शास्त्र शिशु शोभित मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का मर्दन कर स्वर्ग लोक और सभी देवताओं को रक्षा प्रदान की।