
विदेश मंत्रालय ने संसद की एक समिति को बताया है कि भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करने का निर्णय पाकिस्तान की ओर से मैत्री और सद्भावना के सिद्धांतों के उल्लंघन का स्वाभाविक परिणाम है। सूत्रों के मुताबिक, मंत्रालय ने यह भी कहा है कि इंजीनियरिंग तकनीक, जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियरों के पिघलने जैसे बदलते जमीनी हालात के मद्देनज़र संधि की शर्तों पर पुनः बातचीत आवश्यक हो गई है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संदर्भ में दी गई जानकारी
विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने हाल ही में एक संसदीय समिति को 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले और उसके जवाब में भारत द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ समेत अन्य कार्रवाई की जानकारी दी। उन्होंने यह भी बताया कि भारत ने इस हमले में पाकिस्तान की भूमिका और आतंकवाद को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अवगत कराने के लिए 33 देशों और यूरोपीय संघ के दौरे पर संसदीय प्रतिनिधिमंडल भेजा है।
पाकिस्तान की भूमिका पर सीधा आरोप
मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान ने 1960 की सिंधु जल संधि की प्रस्तावना में उल्लिखित सद्भावना और मित्रता के मूल सिद्धांतों का बार-बार उल्लंघन किया है। लगातार सीमा पार से आतंकवाद और बातचीत में अड़ंगे डालने से संधि के क्रियान्वयन पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
बदलते वैश्विक और पर्यावरणीय परिदृश्य
मंत्रालय ने कहा कि सिंधु जल संधि अब भी 1950 और 1960 के दशक की पुरानी इंजीनियरिंग तकनीकों पर आधारित है, जबकि आज की चुनौतियाँ अलग हैं। इनमें प्रमुख हैं:
- जलवायु परिवर्तन
- ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना
- नदियों के प्रवाह में बदलाव
- तेजी से बदलती जनसंख्या संरचना
- स्वच्छ ऊर्जा की बढ़ती मांग
इन सभी बदलावों ने संधि को 21वीं सदी के लिए अनुपयुक्त बना दिया है और इसलिए दोबारा वार्ता अब जरूरी है।
प्रधानमंत्री मोदी का कड़ा संदेश
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी हाल ही में संधि पर भारत के रुख का समर्थन करते हुए कहा था कि “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते”, जो पाकिस्तान के साथ जारी तनाव और आतंकवाद के खिलाफ भारत के सख्त रुख को दर्शाता है।
विदेश मंत्रालय ने दोहराया कि मौजूदा परिस्थितियों में संधि को स्थगित करना भारत के अधिकार क्षेत्र में आता है और यह फैसला बदलते भू-राजनीतिक, पर्यावरणीय और सुरक्षा परिदृश्य को देखते हुए पूर्णतः जायज है।